Friday, 12 July 2019

नदी !

नदी !

सुनो ,
मैंने कही पढ़ा था ,
बहुत गहरी नदी 
बिना आवाज़ के बहती है !
और बहुत ,
गहरे दुःख बिना 
आँसुओं के होते है ;
माना बहुत गहरी नदी 
बिना आवाज़ के बहती है ! 
पर मैंने अक्सर  ,
उसके सैलाबों को   
बेहद उफनते देखा है ;
ठीक वैसे ही , 
बहुत गहरे जख्म 
सहकर किसी के आँसूं , 
भले ही सुख जाए पर अक्सर 
मैंने उन जख्मो को नासूर बनते देखा है ! 
सुनो ,
तुम मेरे आँसुओं 
की तुलना कभी किसी ,
नदी से ना करना क्योंकि ,
मुझे नासूर से बहुत डर लगता है ! 
और ये जख्म नासूर ना बने ,
उसका ध्यान भी अब तुम्हे 
ही रखना है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !