अपने-अपने मुखौटों में हम-तुम ,
कैसे खुद को छुपा कर बैठ गए है ;
हम-तुम अपने-अपने मैं के साथ रहे ,
और बाकी सब को हम भूल गए है ;
सपने जो हम ने साथ-साथ देखे थे ,
सारे वो फिर कैसे तार-तार हो गए है ;
देखने में तो मैं अब भी कली ही हूँ ;
पर मुझ पर भी भवरें मंडरा गए है ,
क्या हम अपने-अपने मैं को त्याग कर ;
तुम और मैं भी अब हम हो गए है !
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