Tuesday, 23 July 2019

मैं फिर भी तुमको चाहूंगा !



मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
सुख के मौसम 
में राहत भरा 
स्पर्श बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
दुःख के मौसम में 
हंसी का ठहाका
बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
धुप में तेरे 
सर पर छांव
का छाता बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
थकान में देह 
का आरामदेह 
बिछौना बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
और विरह की 
वेदना में साथ 
के लिए बुनी 
चादर बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
साथ तुम्हारे 
तुम्हारी ही जैसे
परछाई बनकर !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !