मैं फिर भी तुमको चाहूंगा
सुख के मौसम
में राहत भरा
स्पर्श बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा
दुःख के मौसम में
हंसी का ठहाका
बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा
धुप में तेरे
सर पर छांव
का छाता बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा
थकान में देह
का आरामदेह
बिछौना बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा
और विरह की
वेदना में साथ
के लिए बुनी
चादर बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा
साथ तुम्हारे
तुम्हारी ही जैसे
परछाई बनकर !
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