Wednesday, 17 July 2019

रिश्तों का पहाड़ !

रिश्तों का पहाड़ !

अब तो हर बीतते 
दिन के साथ ये डर 
मेरे मन में बैठता 
जा रहा है ;
कि जब तुम अपने  
प्रेम के रास्ते में आ 
रहे इन छोटे मोटे   
कंकड़ों को ही पार 
नहीं कर पा रही 
हो तो ;
तुम कैसे उन रिश्तों 
के पहाड़ को लाँघ कर 
आ पाओगी सदा के 
लिए पास मेरे ;
अब तो मेरे आंसुओं 
के जलाशय में भी 
तुम अपना चेहरा 
देख खुद को सहज 
रख ही लेती हो ; 
वो तुम्हारा सहजपन 
मुझे हर बार कहता है ;
कि तुमने शायद कभी 
मुझे वो प्रेम किया ही 
नहीं क्योंकि ;
जिस प्रेम में प्रेमिका 
दर-ओ-दीवार को लाँघ 
अपने प्रेम का वरण 
नहीं करती है ;
वो प्रेम कभी पुर्णता 
के द्वार में प्रवेश नहीं 
कर पाता है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !