Saturday, 6 July 2019

वज़ूद !


वज़ूद !

प्रेम हूँ मैं 
वैसे तो मेरा 
अस्तित्व बहुत 
ही बड़ा है ;
पर अगर 
सच कहूँ तो 
डर जाता हूँ ;
कभी कभी 
सच्चाई जानकर ,
मेरी हस्ती बहुत 
छोटी है एक तेरे 
जज्बे से ही मैं हूँ ; 
केवल तेरे दिल 
का वो जज्बा 
जो मुझे कभी 
ईश्वर के समीप 
खड़ा कर देता है ;
और कभी मेरा 
पूरा का पूरा वज़ूद 
तेरे दिल के दरवाज़े 
पर पनाह पाने को  
भूखे प्यासे ही 
तड़पता रहता है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !