पूर्णविराम !
मैं रोज अपने
भावों को लफ़्ज़ों
की शक्ल देकर
एक एक लफ़्ज़ों को
व्यवस्थित क्रम में
सजाने की कोशिश
मात्र करता हूँ
कविता बनती
भी है की नहीं
मुझे नहीं पता
पर जब लफ्ज़
मुझे सजे हुए
दिखाई देते है
तब उनमे तुम
मुस्कराती हुई
मुझे दिखाई देती हो
और मैं तुझे यूँ
मुस्कुराते हुए
देखते ही उसमे
पूर्णविराम
लगा देता हूँ !
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