रिश्तों का कारवां !
एहसासों की पगडंडियों पर
रिश्तों का कारवां उम्मीदों के
सहारे ही आगे बढ़ता है !
लेकिन जिस दिन ये एहसास
कमजोर पड़ने लगते है उस
दिन से ही उम्मीदें स्वतः ही
दम तोड़ने लगती है !
और ज़िन्दगी की वो ही
पगडंडियां जो कारवों से
भरी रहती है वो उमीदों
के रहते हुए भी अचानक
एक दिन सुनसान नज़र
आने लगती है !
और ये उम्मीदें जो दबे
पांव आकर रिश्तो की डोर
पर हावी हुई रहती है
वो फिर एक दम सें
डगमगाने लगती है !
लेकिन जिन रिश्तों की
डोर बुनी होती है मतलब
के धागों से वो टूट जाती है !
और जिन रिश्तों की डोर
होती है बुनी विश्वास के
अटूट धागों से वो डोर उम्मीदों
का बोझ उठा लेती है !
उन सभी रिश्तों की उमीदों
का और रिश्तों की डोर को
टूटने से बचा लेती है !
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