Tuesday, 2 July 2019

तुम सा ही अक्स !


तुम सा ही अक्स !

आपूर्तियों को पूरी तरह ,
पूर्ण कर जैसा तुम चाहती हो 
वैसा कर देना चाहता हूँ मैं !

तुम्हे मस्त मौला सा वही 
पहर दे देना चाहता हूँ मैं ,
जिस पहर में हो सिर्फ मैं 
और तुम और कोई नहीं !

चाहे जैसे भी हो हू-ब-हू 
तुम्हारी सी आकर्षक ,
देह का अक्स तुझमे 
उतार देना चाहता हूँ मैं !
  
बर्फ की सिल्लियों सी 
पिघलती हुई हमारे मध्य, 
की तमाम भाव भंगिमाओं को !  

चुन-चुन कर अपने अनुराग 
के सिल्की मज़बूत धागे में , 
पिरो देना चाहता हूँ मैं !    

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !