अहं ब्रह्मास्मि !
तुम्हारे प्रेम के शब्दों को
मैं मेरी देह में रमा लेती हूँ
तदोपरांत मैं आत्मनिर्भर
होकर अपने तमाम झूठे
शब्दों को तुम्हारे प्रेम के
उजियारे शब्दों से रंग लेती हूँ
तब वो मेरी राह में दीपक
से जलकर मेरा मार्ग प्रशस्त
करते है और मैं साहसी होकर
हमारे प्रेम के विरूद्ध उठती सभी
अँगुलियों को ठेंगा दिखा कर
तुम्हारे सिद्ध शब्दों में कहती हूँ
उन सब से 'अहं ब्रह्मास्मि' और
एक कोमल अनुभूति को महसूस
कर खुद को यौवन की रोशनी में
नहाई अनुभव करती हुई हमेशा
के लिए बस तुम्हारे पास आने
को निकल पड़ती हु !
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