Thursday, 18 July 2019

प्रतीक्षित प्रेम !

प्रतीक्षित प्रेम !

मेरे जीवन की तमाम 
अमावस की रात को 
अपनी शीतल चांदनी 
से जगमगाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो ना तुम ;
मेरे असीम विश्वास को 
अपने सच्चे समर्पण से 
उसे शिव बनाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो ना तुम ;
मेरे अटूट प्रेम का 
सिन्दूर लगा कर मुझे 
अपना प्रखर बनाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो ना तुम ;
मेरे चीर प्रतीक्षित प्रेम 
को अपनी प्रीत के अमरत्व 
से अमर बनाने ही तो इस 
धरती पर आयी 
हो ना तुम;
ओ मेरी प्राणप्रिये 
मेरे इश्क़ के बीज को 
खुद की धरा में बो कर 
उसका विस्तार करने ही 
तो इस धरती पर आयी 
हो ना तुम !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !