जब हो जाये किसी को प्रेम अपने ,
ही प्रतिबिम्ब से डरने वाली से ;
तो दर्द खुद-बा-खुद उस प्रेम के ,
सफर का हमसफ़र हो जाता है ;
जब हो जाये किसी को प्रेम अपनी ,
ही सांसों की तेज़ गति से डरने वाली से;
तो दर्द खुद-बा-खुद उस प्रेम के ,
सफर का हमसफ़र हो जाता है ;
जब हो जाये किसी को प्रेम अपनी ,
ही पदचाप की आवाज़ से डरने वाली से ;
तो दर्द खुद-बा-खुद उस प्रेम के ,
सफर का हमसफ़र हो जाता है ;
जब हो जाये किसी को प्रेम अपनी ,
ही दहलीज़ को पार करने से डरने वाली से ;
तो दर्द खुद-बा-खुद उस प्रेम के ,
सफर का हमसफ़र हो जाता है ;
और जब दर्द किसी प्रेम के सफर ,
का हमसफ़र हो बन जाता है ;
तो आँसुओं को देनी पड़ जाती है इज़ाज़त ,
आँखों के काजल को बहा ले जाने की !
No comments:
Post a Comment