अब तलक !
जो साँस है मेरी ज़िन्दगी
की अब भी बहती है अपनी
ही गति से होकर बिल्कुल
बेखबर अब तलक ;
होकर बिलकुल बेखबर
दर्द से मेरे अब तलक ;
और जो है बेअसर मेरी
छुवन से है अब तलक ;
मगर जिन्दा रखे हुए
है मुझे अब तलक ;
वो जो अपनी शीतल
छुवन से मुझे आज़ाद
करती है दुनिया की
हर एक तपन से अब तलक ;
उसकी खामोश उपस्थिति
ही करती है तर्क-वितर्क
मुझ से अब तलक ;
जो साँस है मेरी ज़िन्दगी
की अब भी बहती है अपनी
ही गति से होकर बिल्कुल
बेखबर अब तलक !
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