अधूरे चांद की शाम।
आधे चाँद कि अधूरी शाम को ,
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ ;
उस तुम्हारे अनछुए एहसास को अब
मैं तुम्हे छूकर पूरा करना चाहती हूँ ;
जो मेरे अनकहे जज़्बात है उन अनकहे ,
जज्बात को कहकर पूरा करना चाहती हूँ ;
जिसकी हर पल बहुत याद आती है उसके
बिना गुजरती अधूरी शाम को उसके साथ ,
गुजारकर अब पूरी करना चाहती हूँ ;
आज भी कही दूर बजती घंटियों कि आवाज़ ,
को अकेले सुनने का जो अधूरापन है ;
उन घंटियों की आवाज़ को तुम्हारे ,
साथ बैठ कर सुनना चाहती हूँ ;
वो मेरे साथ चलती तुम्हारी अकेली परछाई को ,
तुम्हारा हाथ थामकर दोकली करना चाहती हूँ ;
आधे चाँद कि अधूरी शाम को ;
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ !
आधे चाँद कि अधूरी शाम को ,
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ ;
उस तुम्हारे अनछुए एहसास को अब
मैं तुम्हे छूकर पूरा करना चाहती हूँ ;
जो मेरे अनकहे जज़्बात है उन अनकहे ,
जज्बात को कहकर पूरा करना चाहती हूँ ;
जिसकी हर पल बहुत याद आती है उसके
बिना गुजरती अधूरी शाम को उसके साथ ,
गुजारकर अब पूरी करना चाहती हूँ ;
आज भी कही दूर बजती घंटियों कि आवाज़ ,
को अकेले सुनने का जो अधूरापन है ;
उन घंटियों की आवाज़ को तुम्हारे ,
साथ बैठ कर सुनना चाहती हूँ ;
वो मेरे साथ चलती तुम्हारी अकेली परछाई को ,
तुम्हारा हाथ थामकर दोकली करना चाहती हूँ ;
आधे चाँद कि अधूरी शाम को ;
अब पूरी शाम करना चाहती हूँ !
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