Saturday 10 August 2019

ख़्वाबों की तासीर !


ख़्वाबों की तासीर !

तेरे दीदार को 
तरसती है मेरी 
ये खुमार से भरी 
दोनों निश्छल आँखें 
रोज रात एक नया 
ख्वाब बुन लेती है 
जिनकी तासीर मेरे 
होंठों पर चासनी सी
धीरे-धीरे उतरती है 
फिर पूरी रात इश्क़
कतरा-कतरा कर
मेरी रूह में धीरे-धीरे 
उतरता रहता है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !