Thursday, 8 August 2019

शब्दों का बोझ !


शब्दों का बोझ !

सब कुछ तुमसे कह  
लेने के बाद सब कुछ 
अच्छा सा लगता है 
ये बारिश की बूँदें
पत्तियों की सरसराहट
ये महकी ठंडक
मिटटी की खुशबू
वो हलकी सी रौशनी
इस भीगते बदन पर
एक हलकी सी सिरहन
सब कितने अच्छे लगते हैं
समय रुक जाता है
एक नए प्रकाश में डूब
मन मंद-मंद मुस्काता है
पत्थरों से भारी उन शब्दों का
सदियों का कुछ बोझ
सा उतर जाता है
यूँ पट पर मेरे समक्ष खड़े तुम 
तुमसे सब कुछ कह लेने के बाद
सब कुछ अच्छा सा लगता है |

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !