मेरी प्रेम कवितायेँ !
अच्छा ये बताओ तुम
कि तुम्हे अब भी मेरी
प्रेम कविताओं मे तुम
नज़र नहीं आती क्या
अच्छा ये बताओ तुम
क्या तुम्हे अब भी मेरे
उन अनलिखे लिखे
खाली पन्नो मे मेरे
दिल की सदा सुनाई
नहीं देती क्या
जिसमे मैंने खुद को
तुम्हारे हाथों हार कर
स्वीकारा था की “हाँ
मुझे मुहब्बत है एक
सिर्फ तुमसे बोलो क्या
इसलिए तुम अब तक
नहीं लांघ पायी हो उस
घर की दीवारी को बस
इतना ही बता दो तुम !
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