Monday 5 August 2019

दिल की गुस्ताखी !


दिल की गुस्ताखी !

गुस्ताखी तो देखो दिल की मेरे चाहता है , 
रहना साथ उसके ही सदा ; 
जो मुझे सिर्फ अंधेरो में मिलना चाहती है !
वो चाहता है मुस्कान बनकर उसके ही 
होंठो पर रहना सदा ; 
जो हंसती है अपना दरवाज़ा बंद कर के सदा !
वो चाहता है रहना बनकर सुरीला संगीत , 
उसके ही कानो में सदा ;
जो प्रायः संगीत को आँखों से सुनती है !
वो चाहता है बनकर यौवन की मदहोश , 
खुश्बू उसके ही नथुनों में ;
जो अक्सर मेरे तन की खुश्बूं मिटाकर ; 
ही मिलती है सबसे सदा !
वो चाहता है बनकर रहना उसके कंठ में , 
कोयल की सुरीली आवाज़ बनकर ; 
जो अक्सर गुमसुम रहना पसंद करती है !
वो चाहता है रहना उसके हृदय में अप्रितम ,
चाहत बनकर जो चंद जिम्मेदारियों के अलावा ; 
कुछ और रखना ही नहीं चाहती अपने दिल में !
वो चाहता है बनकर सिन्दूर रहना उसी एक , 
अपनी प्रियतमा की मांग का ; 
जो अक्सर बिना सिन्दूर रहना पसंद करती है ! 
गुस्ताखी तो देखो दिल की मेरे चाहता है , 
रहना साथ उसके ही सदा ; 
जो मुझे सिर्फ अंधेरो में मिलना चाहती है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !