Wednesday 28 August 2019

सूरज का सिन्दूर !


सूरज का सिन्दूर !

चाहता हूँ अब हर शाम 
मैं भी उतरना तुझमे 
कुछ इस तरह से जैसे 
दिन भर का तपता सूरज 
शाम को समंदर में उतरता है  
तो उसकी लहरें कुछ यूँ 
लगती हैं कि जैसे उतर 
रहा हो उनका सारा का 
सारा नमक समंदर में  
और सूरज भर रहा हो 
तन्मयता से अपना सारा 
सिन्दूर उसमे ठीक वैसे ही 
मैं भी चाहता हूँ जब तुम 
अपने लबों को रख कर 
मेरे लबों पर गुजरो मुझमे से  
तो यूँ लगे जैसे की मेरे 
जिस्म से उतर कर मेरा
ही जिस्म चढ़ गया हो 
तुझ पर और मेरी रूह के 
पांव ना टिके धरती पर 
और वो बस उड़ती रहे 
हवाओं में !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !