Sunday, 4 August 2019

हवन की समिधा !




तुम्हारे प्रेम क्षुधा से 
व्याकुल मेरा हृदय 
तृप्ति की चाह सिर्फ 
एक तुम से रखता है ;

मेरे मन में जबसे तुम 
हुई हो शामिल ये दिल 
जिद्द पर अड़ा है बनने 
को तुम्हारे हवन कुंड 
की समिधा है ;

जो हर एक आहुति के 
साथ धधक कर पूर्ण 
होना चाहता है सुनते 
ही स्वाहा ;

ताकि तुझमे मिलकर 
प्रेम की समिधा सा वो 
हो जाए पूर्ण और मेरे 
मन की व्याकुल क्षुधा 
को यज्ञ की पूर्णाहुति के 
साथ चीर शांति मिले !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !