तुम्हारे प्रेम क्षुधा से
व्याकुल मेरा हृदय
तृप्ति की चाह सिर्फ
एक तुम से रखता है ;
मेरे मन में जबसे तुम
हुई हो शामिल ये दिल
जिद्द पर अड़ा है बनने
को तुम्हारे हवन कुंड
की समिधा है ;
जो हर एक आहुति के
साथ धधक कर पूर्ण
होना चाहता है सुनते
ही स्वाहा ;
ताकि तुझमे मिलकर
प्रेम की समिधा सा वो
हो जाए पूर्ण और मेरे
मन की व्याकुल क्षुधा
को यज्ञ की पूर्णाहुति के
साथ चीर शांति मिले !
No comments:
Post a Comment