Sunday, 30 June 2019

मेरा प्रेम !


मेरा प्रेम !

नितांत अकेलेपन की 
जंजीरों में जकड़ा मेरा 
जो अस्तित्व है 
तुमसे बंधकर ही सबसे 
मुक्त होने की आस पर 
जीता है  
मेरा हर लम्हा हर घडी 
तुम्हारा इंतज़ार करता है 
एक सिर्फ तुम्हारा और
चाहता है की तुम समझो 
मेरे दिल की हर एक ऊपर 
नीचे होती धड़कन को 
और इसके अश्रु के ताप को 
और मेरे कलेजे में रुकी 
उन सिसकिंयों की घुटन को 
मेरी नज़रो के सहमेपन को
और आपस में लड़ती मेरी 
अँगुलियों के द्वंद को गर 
वक़्त मिले तुम्हे कभी तो 
इन सबका अर्थ समझना 
समझ आ जाएगा तुम्हे 
मेरा प्रेम !

Saturday, 29 June 2019

इश्क़ की ख़्वाहिशें !


इश्क़ की ख़्वाहिशें !

वो इश्क़ ही है 
जो अक्सर मुझ से 
हंसी ठिठोली करता है 
खुश रहा करो तुम 
मुझ से अक्सर ही 
वो कहता रहता है 
और कभी-कभी वो 
दिल दुखाने के लिए  
उल्टी-सीधी हरकतें
भी वो कर ही देता है 
वो कुछ अजब सा है 
अपने इश्क़ में वो 
शिद्द्तें भी भरता है 
वो मेरे दामन में 
आग भी लगाता है 
फिर खुद ही उसे 
बुझाने के खातिर 
बारिश भी करता है 
दिल में मेरे वो साथ 
जीने और मरने की 
ख़्वाहिशें भी जगाए 
रहता है !

Friday, 28 June 2019

बारिश की बुँदे !


बारिश की बुँदे !

बारिश की ये रिमझिम 
बुँदे मुझे तुम्हारे स्पर्श,
का एहसास दिलाती है !

वो कभी तुम्हारी ही 
तरह मेरी इन पलकों,
पर ठहर जाती है !

तो कभी रूककर मेरे 
होंठों पर बिलकुल 
तुम्हारी ही तरह, 
मुस्कराती है !

तुम छायी रहती हो 
मेरे अस्तित्व के आकाश, 
पर कुछ इस तरह !

कि मुझे हर शय में, 
सिर्फ और सिर्फ एक 
तुम नजर आती हो !

Thursday, 27 June 2019

एक सच !


एक सच !

तुमसे अच्छा मुझे 
तुम्हारा नाम लगता है 
जो हमेशा ही रहता है  
मेरे आस-पास ही  
महका-महका सा 
और जब धीमे से 
मैं गुनगुनाता हूँ 
तुम्हारा वो नाम
तो हवा में घुल कर
वो हवा को भी जैसे 
महका जाता है   
कभी-कभी वो नाम  
मुझे खिड़की से झांकती 
रेशमी-मुलायम सी 
सुबह के सूरज की
पहली किरण सा 
ही लगता है 
तो कभी मुझे 
वो सर्द रातों में 
गर्म लिहाफ सा 
लगता है वो तुम्हारा 
नाम मुझे कभी-कभी 
तुमसे भी अच्छा लगता है !

Wednesday, 26 June 2019

अकेला छोड़ जाती हो !


दरवाजा बंद कर दस्तक भी देती हो , 
फिर छुप कर आवाज़ भी लगाती हो ;
  
चुप रहने को कह कर मुझे तुम खुद ही ,   
टेढ़ी-टेढ़ी नज़रो से सवाल भी करती हो ;

रोज रोज मेरा साथ देने के नाम पर तुम , 
कुछ देर मुझसे मिलने भी चली आती हो ;

फिर तुम ही बताओ क्यों तुम बार-बार , 
मुझे ऐसी दोहरी दुविधा में डाल जाती हो ;

यूँ रोज कल आने का बोल कर तुम मुझे ; 
क्यों रोज यूँ अकेला छोड़ जाती हो !

Tuesday, 25 June 2019

ख़ामोशी !


ख़ामोशी को खामोश समझना , 
भूल ही होती है अक्सर ;

कितनी हलचल और अनगिनत 
ज्वार भाटे समाए होते है इसमें अक्सर ;

आँखों में समाई नमी जाने कितने 
समंदर छुपाये होती हैं अपने अंदर अक्सर ;

नहीं टूटते ऐसे मन के ज्वार -भाटे ,
जब तक कोई कंधे को छू कर ना आँखे अक्सर ;

कि मैं तुम्हारे साथ हूँ हर पल ;
हर परिस्थिति में समझे तुम !

Monday, 24 June 2019

भयहीन प्रेम !


भयहीन प्रेम !

प्रेम में होने से
भय कैसा ?
मानव जीवन
का सारा लेखा 
जोखा बाँच पता 
यही चलता है 
चिर काल से ही
प्रेम में उत्थान 
पाये अस्तित्व ही
जी पाये हैं
काल की सीमाओं को 
वो ही पार कर पाये हैं
इस अदभुत अनुभव
को जी पाने 
की संभावना
से मुँह क्यों मोड़ना ?

Sunday, 23 June 2019

ख्वाहिशें !


ख्वाहिशें !

बारिश की इन 
बूंदों के साथ हम 
और तुम खेले है
इन बूंदों के लिये ही
मिले और बिछड़े है
तुम्हारी जिद्द इन 
बूंदों को पकड़ लेने की
मेरी जिद इन बूंदों में 
साथ तुम्हारे भीग जाने की
ख्वाहिशें चाहे हमारी अलग हो
बारिश की बूंदों के साथ
खेलने की चाह एक थी
ठीक वैसे ही जैसे 
तुम मेरे पास आना 
चाहती हो पर किसी का
दिल दुखाये बगैर और
मैंने ठान रखा है नहीं 
जीना तेरे बगैर चाहे 
ख़ुदा को करना पड़े 
मुझे नाराज़ !

Saturday, 22 June 2019

सपने नए !



सपने नए !
ख़्वाबों के समंदर में 
एक टुकड़ा उम्मीदों 
का जब फेंकता हूँ 
मैं बड़ी शिद्दत से
कुछ बूँदें आस की 
छलक ही आती हैं 
मेरे चेहरे पर भी
मेरे लिए तुम उन 
बूंदों की ठंडक हो
ताज़गी भरती हो 
मेरी रगों में हर पल
हर रोज़ मेरा तुम 
एक दम नया करती हो  
हर रोज़ मुझमे 
सपने नए भरती हो !

Friday, 21 June 2019

ख्वाब अधूरे !


ख्वाब अधूरे !

सुनो आओ
कुछ देर मेरे पास बैठो,
मैं लौटा दूंगी तुम्हें तुम्हारा 
खोया हुआ विश्वास
कुछ देर बैठो
मेरे हाथों को थाम कर
मैं लौटा दूंगी तुम्हे
जीने का एहसास
कुछ देर देखो
तुम मेरी आँखों में
मैं लौटा दूंगी
तुम्हारी आँखों के ख्वाब
कुछ देर सुन लो
तुम इन धड़कनो की आवाज़
तुम्हे मिल जायँगे तुम्हारे सारे 
सवालो के जवाब
सुनो यही सब तो  कहा था 
तुमने मुझे मेरा हाथ पकड़ने 
के पहले  
पर मैं तो बैठा हु
तुम्हारे हांथो को थामे
पिछले कई सालो से
देखते हुए तुम्हारी ही
आँखों में जंहा रखे थे
मैंने अपने ख्वाब जो
अब तक है अधूरे ! 

Thursday, 20 June 2019

अभिव्यक्त भावनाएं !




भावनाए जब बहती है
तो बहकर वो सब कुछ 
ही तो कह देना चाहती है
और कई बार वो खो जाती है 
मन के अथाह महा सागर की  
किसी ऊँची नीची होती लहर 
के नीचे दबकर जैसे कोई 
अनजान भंवर लीन लेता है 
उसे खुद में ठीक वैसे ही 
भावनाएं मन में उठती है 
और मन ही में मर जाती है
या कभी-कभी वो बन आंसू 
खुद अपनी मौत बन जाती है
कभी कोई अधूरा चित्र बना 
वो अपनी लाचारी कहती है
और कभी-कभी पाकर वो  
कलम और स्याही का सहारा 
कविता भी बन जाती है...
जब भावनाए बहती है
तो बहकर वो सब कुछ 
ही तो कह देना चाहती है

Wednesday, 19 June 2019

फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !


सब कुछ तो है,
पास मेरे और है; 
थोड़ी सी आस भी,
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !  
सब कुछ तो है,
पास मेरे एक; 
छोटी सी ज़िन्दगी,
पाषाण सा तन;
और ये शिला सा, 
स्थिर मन भी तो है;
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !  
सब कुछ तो है,
पास मेरे और; 
हाँ रुकी-रुकी सी, 
सांस भी तो है;
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं ! 
सब कुछ तो है,
पास मेरे बस; 
थोड़ी सी ख़ुशी,
थोडा सा सुकून;
और थोडा सा, 
चैन ही तो नहीं है;
फिर क्यूँ परेशां हूँ मैं !

Tuesday, 18 June 2019

वस्ल का जादू !




तुझ से बिछड़ कर, 
जब खुद को पाया;  
तब जाकर अपनी, 
पहचान का लम्हा; 
अपने करीब आया !

लोग अतिशों से, 
उजाला कर रहे थे; 
लेकिन मैंने मिट्टी, 
का दिया अपनाया ! 

एक पल थी तब, 
एक सदी पर भारी;
तेरी चाहत में ऐसा, 
भी लम्हा आया !

पाँव छलनी थे, 
वफ़ा मेरी घायल थी; 
जाने क्यूँ उस मोड़ पर, 
भी तेरा पता याद आया ! 

एक लम्हे के, 
वस्ल का जादू;
तुझमे समाए तो, 
समझ में आया ! 

Sunday, 16 June 2019

पिता




तेरी आहट जो जाने 
वो है तेरे पिता ;
मेरी पदचाप जो पहचाने
वो है मेरे पिता ;
तेरे दिल में है क्या-क्या
वो जाने तेरे पिता ;
मेरी जुबां पर नहीं है क्या-क्या
वो जाने मेरे पिता ;
तेरे चेहरे के भाव जो पढ़ ले
वो है तेरे पिता ;
मेरे मन का लिखा जो पढ़ ले
वो है मेरे पिता ;
तेरे हर दर्द को जो हर ले
वो है तेरे पिता ;
मेरे हर जख्म को जो भर दे 
वो है मेरे पिता ;
तुझे देखकर जो है जीते 
वो है तेरे पिता ;
मुझे देखकर जो है जिन्दा
वो है मेरे पिता ;
तुझमे देखे जो अपना जंहा
वो है तेरे पिता ;
मुझमे देखे जो सारा जंहा
वो है मेरे पिता ;
तू जो मांगे वो ला कर दे  
वो है तेरे पिता 
मैं जो ना मांगू वो भी ला कर दे 
वो है मेरे पिता ;
तेरे सुख दुःख दोनों के जो साथी है
वो है तेरे पिता ;
मेरे होने का साक्षात प्रमाण है 
वो है मेरे पिता !  

Saturday, 15 June 2019

एक शख़्स !


मेरे होने की वजह है वो एक शख़्स ,
पर मुझ से खफा है वो एक शख़्स ; 

एक उम्र से मुझसे दूर है वो लेकिन , 
फिर भी इस दिल में रहता है वो एक शख़्स ;

उसके बिना मैं जिन्दा ही नहीं होती ,
मेरे जीने की आस है वो एक शख़्स ; 

उस के बिना मैं तो मैं नहीं रहती ,
क्या मेरे इस जिस्म का दिल है वो एक शख़्स ;

मेरे दिल की ख़्वाहिशें एक सिर्फ वो जानता है , 
किस क़दर मुझसे परिचित है वो एक शख़्स ;

उस से मेरा उतना ही मेल मुमकिन है , 
इस क़दर इस रूह की लिबास है वो एक शख़्स !

Friday, 14 June 2019

तुम्हारा जन्मदिन !


तुम्हारा जन्मदिन !

तोहफ़े में तुमको क्या दूँ ,
उलझन सी हो रही है ;

फूलों का दूँ गुलदस्तां लेकिन , 
तुमसे ख़ूबसूरत कहाँ है वो ;

तोहफ़े में कुछ सांसें दूँ तुम्हे ,
बिन तेरी खुशबू के कुछ नहीं है वो ; 

या अपनी ज़िंदगी दे दूँ तुम्हे , 
जो मंसूब है सिर्फ एक तुम से वो ; 

अपनी ये दोनों ऑंखें दे दूँ तुम्हे ,
जो मुंतज़िर है एक बस तुम्हारी वो ;

अपना दिल एक और बार दे दूँ तुम्हे , 
लेकिन धड़कता तो है तुम्हारे नाम से ही वो ;

कुछ ग़ज़में कुछ नज़्में लिख कर दूँ तुम्हे ,
लेकिन इनमे लफ्ज़ तेरे ही नाम के तो होते है वो ;  

फिर तुम ही बताओ ऐसा क्या दूँ मैं तुम्हे ,
कुछ भी तो नहीं ऐसा पास मेरे जिनमे न हो तुम ;   

सोचता हूँ तुम्हे दे देता हूँ आज अपना मैं ,
जिसे आज तुम कर ही लोगी अब अपना हम !

Thursday, 13 June 2019

जून की बारिश !


जून की बारिश !

आओ इस तपते जून की बारिश में,
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक;
होंठ दोनों के एक साथ थरथराने ना लगे !

आओ इस तपते जून की बारिश में,
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक;
तपती धरा को बादल बरस कर हरी ना कर दे !

आओ इस तपते जून की बारिश में,
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक;
पसीने की ये बूंदें जमकर बन ना जाए,
ओस की ठंडी-ठंडी छोटी छोटी बूंदें !

आओ इस तपते जून की बारिश में,
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक;
तृप्त ना हो जाए तुम्हारी यौवन युक्त तपिश !

आओ इस तपते जून की बारिश में,
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक;
हर्फ़ नज़रों से निकलना छोड़ होंठों,
से ना करने लगे इज़हार !

आओ इस तपते जून की बारिश में,
तुम और मैं तब तक भीगें जब तक;
हमें ये एहसास ना हो जाए की आ गया है, 
सावन भिगोने अपनी बरसात में हमें !

Wednesday, 12 June 2019

तेरी याद !


वो आकर मेरे दर पर आवाज़ देती है
और चली जाती है ,
फिर तेरी याद भी आती है
और आकर चली जाती है ;

मेरी आँखों से आँखे मिलते ही
उसकी ऑंखें नम हो जाती है , 
फिर वो मुझसे अपनी नज़रों को चुराती है
और चली जाती है ; 

ज़िन्दगी की भाग दौड़
मेरे बने बनाये बाल बिगाड़ती है ,
फिर वो मेरे बाल बनाती है
और चुपचाप चली जाती है ;

मुझे चिढ़ाने के खातिर
चाँद के साथ अठखेलियाँ करती है , 
और चांदनी मेरा दर्द बढाती है
और फिर चली जाती है ; 

ये मोहब्बत भी कितनी
अजीब चीज़ है " प्रखर " ,
मेरी शाम के चंद लम्हों को सजाती है
और चली जाती है !

Tuesday, 11 June 2019

ऐसा क्यों है !


सुना था की, 
एक से नहीं रहते हालात, 
एक से नहीं रहते तअल्लुक़ात, 
एक से नहीं रहते सवालात; 
एक से नहीं रहते जवाबात !

सुना था की,
एक से नहीं रहते तजुर्बात, 
एक से नहीं रहते दिन-रात, 
एक सी नहीं रहती कायनात, 
एक सिर्फ ऊपर वाले के सिवा;
एक सा कोई नहीं रहता यहाँ !

फिर ऐसा क्यों है, 
कि मैं आज भी वैसा ही हूँ,
तेरे लिए जैसा उस पहले दिन था;
जिस पहले दिन मैंने तुम्हे देखा था ! 

फिर ऐसा क्यों है, 
कि आज भी दो घड़ी जब तुम, 
नहीं दिखती मुझे तुम तो क्यूँ ;
मन मेरा बैचैन हो उठता है !

फिर ऐसा क्यों है, 
कि आज भी जिस दिन तुम, 
ना मिलो तो वो दिन गुजरता, 
ही नहीं वैसा जैसा दिन गुजरता है ; 
जब तुम होती हो साथ मेरे !

फिर तुम ही बताओ, 
क्यूँ हूँ मैं आज भी वैसा, 
जैसा था मैं उस दिन जिस; 
दिन मैं मिला पहली बार तुमसे !

Monday, 10 June 2019

मेरे हमसफ़र तुम हो !


और कैसे बताऊँ तुम्हे की तुम मेरे क्या हो , 
मेरी ग़ज़लें मेरी नज़्में मेरा लहजा तुम हो ;

दुनिया वालों से वास्ता ही नहीं रक्खा मैंने , 
मुझ को दुनिया से ग़रज़ क्या मिरी दुनिया तुम हो ;

तुम को सदा सर झुका कर ही पढ़ा है मैंने , 
जैसे आसमां से उतरा कोई फरिश्ता तुम हो ; 

तुम न होते तो मेरा पुनर्जन्म ही ना होता , 
मेरी ज़िन्दगी की स्याह रातों के चाँद तुम हो ; 

मसीहाओं से मरहम की तलब नहीं मुझ को ,
दिल ये जानता है की मेरे ज़ख़्मों का इलाज तुम हो ; 

मेरी साँसों का वसीला है तुम्हारी निस्बत , 
मेरी पांव की जमीं हो तुम मेरे सर का आसमां तुम हो ; 

अपनी हाथों की लकीरों पर पूरा भरोषा है मेरा ,  
मेरे हमसफ़र मेरी तक़दीर में लिखे तुम हो ! 

Sunday, 9 June 2019

पिता !




जिनकी सख्त सी आवाज़ में  
भी ढ़ेरों परवाह छुपी होती है
वो कोई और नहीं बल्कि हमारा  
साहस और सम्मान होता है 

जिनकी रगों में ज़ज़्बों का  
अविरल दरिया बहता रहता है
वो कोई और नहीं बल्कि हमारे  
वज़ूद की वो पहचान होता है 

कैसी ही परिस्थिति पैदा हो
जो उनसे जूझता ही रहता है
वो कोई और नहीं बल्कि हमारी  
की शोहरत की वो जड़ें होता है 

सारी मुसीबत और परेशानी
को जो हंसकर झेलता रहता है      
वो कोई और नहीं बल्कि हमारे  
रौनक की वो जान होता है 

जो अपनी औलादों के खातिर 
अपनी सारी उम्र जीता नहीं बल्कि  
बिता देता है वो कोई और नहीं बल्कि 
हमारे दिल की धड़कन और सारे घर 
की प्राण प्रतिष्ठा हमारा पिता होता है !

Saturday, 8 June 2019

मैं मुकम्मल हो गई हूँ !


मैं इश्क़ के पानी में हल हो गई हूँ ,
अब तक अधूरी थी मुकम्मल हो गई हूँ ; 

पलट पलट कर आता है जो कल ,
मैं वो आने वाला कल हो गई हूँ ;

बहुत देर से पाया है मैंने खुद को , 
मैं अपने सब्र का फल हो गई हूँ ;

हुआ है मोहब्बत को इश्क़ जब से , 
उदासी तेरा आँचल मैं हो गई हूँ ;

सुलझाने से और उलझती जा रही हूँ , 
मैं अपनी ज़ुल्फ़ का बल हो गई हूँ ;

बरसता है जो बे-मौसम ही अक्सर , 
मैं उस बारिश में जल थल हो गई हूँ ; 

मेरी ख़्वाहिश है की मैं तुम हो जाऊ ,  
मुझे लगता है की मैं पागल हो गई हूँ !

Friday, 7 June 2019

राजकुमारी मेरी आँखें !


कितनी शिद्दत से तुम्हे पुकारी थी मेरी ऑंखें ,
ख़्वाबों के बिखर जाने से हार गयी मेरी आँखें ;

दीपों की भांति सारी रात जागती मेरी आँखें ,
नींदों के शबिस्तान में भारी भारी मेरी आँखें ;

तन्हाई में भी कितने ख्वाब सजाती है ऑंखें , 
बुझ सकती नहीं रंज की मारी मेरी आँखें ;

तुम्हे इस मकां की मकीं बनाने की खातिर ,  
शबनमी हुई और भी प्यारी ये मेरी आँखें ;

एक तेरी ज़ियारत से छलकता है उजाला इसमें ,
एक तेरे सुर्मा-ए-मंज़र ने निखारी मिरी आँखें ;

सपनों के तख़्त-ओ-ताज पर बैठी है ,
ऐसे की जैसे राज-कुमारी हो मेरी आँखें ;

हिज़्र के मौसमों ने भी अपना फ़र्ज़ निभाया ;
उसने अश्कों के सितारों से सँवारी मेरी  आँखें !

Thursday, 6 June 2019

लहजे को नर्म करो !


इश्क़ को यूँ आत्मसात करो ,
ख़त्म तुम अपनी ज़ात करो ;

इश्क़ से जब मिलने जाओ ,
पहले ख़ुद को तुम तैयार करो ; 

दिन भर खुद के साथ रहो , 
इश्क़ में बसर अब रात करो ; 

रात की ज़ुल्फ़ सँवर जाए ,
गर हिज्र को तुम वस्ल करो ;

इश्क़ को तुम दिल में बसाओ ,  
फिर उसकी धड़कनों पर कब्ज़ा करो ; 

मुझ पर कुछ ऐसे प्यार लुटाओ ,
बंजर जमीन पर जैसे बरसात करो ;

बात हो जब भी इश्क़ के बारे में , 
अपने लहजे को तुम थोड़ा नर्म करो ; 

उम्र की पूँजी यूँ ही ख़त्म ना हो ,
कुछ कम खर्च तुम इसे उस पर करो ; 

नयनों का अमृत चखने के लिए , 
तर्क सभी तुम आज़माया करो !

Wednesday, 5 June 2019

प्रीत और प्रेम !


प्रीत और प्रेम !

प्रीत प्रेम को गुनगुनाती रही 
और मैं गीत की धुन बनाती रही

प्रीत प्रेम के विरह में जलती रही 
और मैं उसकी आंच में जलती रही 

प्रीत प्रेम को चुपचाप बुलाती रही 
और मैं उनकी नींद के पर बनाती रही

प्रीत प्रेम से अँखियाँ लड़ाती रही
और मैं अपने आप में मुस्कुराती रही 

प्रीत प्रेम की हिद्दत में जलने का सोचती रही
और मैं आंच की कमी को सर उठाते देखती रही 

प्रीत प्रेम पर अपना प्यार लुटाती रही 
और मैं अकेली अपना फ़र्ज़ निभाती रही 

Tuesday, 4 June 2019

राही जीवन पथ का !


राही जीवन पथ का !

जब तक चलेगी ज़िन्दगी की साँसें ,
कहीं प्यार तो कहीं तकरार मिलेगा ;
कहीं बनेंगे सम्बन्ध अंतर्मन से तो ,
कहीं आत्मीयता का आभाव मिलेगा ! 

कहीं मिलेगी ज़िन्दगी में प्रशंसा तो ,
कहीं नाराजगियों का पहाड़ मिलेगा ;
कहीं मिलेगी सच्चे मन से दुआ तो ,
कहीं भावनाओं में भी दुर्भाव मिलेगा !

कहीं बनेंगे पराये रिश्ते भी अपने तो ,
कहीं अपनों में ही खिंचाव मिलेगा ;
कहीं होगी ख़ुशामदें चेहरे पर तो ,
कही पीठ पर छुरे का घाव मिलेगा ! 

तू चलता रह राही जीवन पथ पर ,
जैसा भाव वैसा तुझे प्रभाव मिलेगा ;
रख स्वभाव में शुद्धता का स्पर्श तू ,
अवश्य मनचाहा तुझे पड़ाव मिलेगा !

Monday, 3 June 2019

एक बूंद हूँ !


एक अदना बूंद 
सी पहचान रखता हूँ
बाहर से शांत हूँ
मगर अंदर एक 
तूफान रखता हूँ
रख के तराजू में 
अपने प्यार की 
खुशियाँ दूसरे 
पलड़े में मैं अपनी 
जान रखता हूँ
किसी से क्या उस 
रब से भी कुछ नहीं 
माँगा अब तक मैंने  
मैं मुफलिसी में भी 
नवाबी शान रखता हूँ
मुर्दों की बस्ती में 
ज़मीर को ज़िंदा 
रख कर ए जिंदगी 
मैं तेरे उसूलों का 
मान रखता हूँ ! 

Sunday, 2 June 2019

बारिश की बूंदें !


मन में कितनी उमंगें जगाती है , 
ये बारिश कितना कुछ कहती है ;  

अनगिनत सुनहरे ख़्वाब सजाती है , 
जब भी मैं इसकी बूंदों में नहाती हूँ ;

कितना कुछ ये मुझमे बोती रहती है , 
मुझे स्त्री होने का एहसास कराती है ;

रोज कितना कुछ नया सिखाती है , 
मुझे नाज़ उठाना सिखाती रहती है ;

मेरे रोम-रोम को झंकृत करती है ,
संगीत और साज़ बजाती रहती है ;

अपनी बूंदों की मनमानियों से , 
मेरे रोम रोम में आग लगाती रहती है ;

मेरे लबों पर ये दुआ पिया की सजाती है , 
प्रेम प्रीत की ये जोत जगाती रहती है ;

मन में कितनी उमंगें जगाती है ,
ये बारिश कितना कुछ कहती है ! 

Saturday, 1 June 2019

मोहोब्बत जमीं की !


क्योँ भागती-दौड़ती सी ज़िन्दगी रुकी हुई है ,
क्या ये मेरे लिए ही रुकी हुई है ;

परछायी को तो कब का विदा कर दिया गया है ,
फिर देह क्योँ अब तक वहीँ रुकी हुई है ;

आँखों से ना-उम्मीद होकर के ख़्वाबों की ताबीर ,
पलकों की नम कोरों पर रुकी हुई है ;

बारिशों का लिहाज़ करती है ये हवाएं ,
वो यूँ ही तो नहीं रुकी हुई है ;

मैं आने वाले कल से मिल आया हूँ ,
दुनिया को देखो यहीं रुकी हुई है ;

इश्क़ आसमां का होकर भी जमीं पर उतर आया है ,
मोहोब्बत जमीं की होकर भी दहलीज़ के अंदर रुकी हुई है !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !