Sunday, 31 March 2019

बेक़रार करवटें !

बेक़रार करवटें !

अक्सर ही यूँ, 
आधी अधीर रातों को, 
जब मेरी करवटें मुझे यूँ, 
बेहद परेशान करने लगती है; 

तब मैं नींदों से, 
उठकर खुद के दिल, 
पर खुद ही दस्तक देता हूँ; 

ताकि उन करवटों, 
को लगे तुम आ गयी हो, 
और वो चैन से मुझे सोने दें; 

अब तक कुछ इसी, 
तरह मैं अपनी ही बेकरार, 
करवटों को अपनी ही थपकियों,  
से तुम्हारे आने का यकीन दिलाता आया हूँ !

Saturday, 30 March 2019

प्रेम कसता है ताने !

प्रेम कसता है ताने !

प्रेम कभी तो खड़ा होता है, 
जीवन की अकेली और सुनसान राहों पर; 

या फिर कभी खड़ा होता है, 
वो वक़्त के व्यस्ततम मुहानों पर; 

वो साथ हो लेता लेता है, 
हर एक साहसी व दुस्साहसी के साथ; 

जो उस से नज़र मिलाकर उसका, 
सामना करने को हर वक़्त रहता है तैयार; 

नहीं तो वही प्रेम कई बार कसता है, 
ताने और करता है किलोल उस के साथ; 

जो अक्सर उसे हवाला देते है, 
अपनी मज़बूरियों का और जो करते है;   

उस प्रेम को दरकिनार वो भी, 
किसी अनजान और दकियानूसी 
सोच की कर के परवाह ! 

Friday, 29 March 2019

एक सूरज चाँद बन जाता है !

एक सूरज चाँद बन जाता है !

अक्सर ही भर जाती है,
उसकी आवाज़ जब वो मेरे 
दर्द की दास्ताँ, इतनी दूर बैठे 
हुए भी सुन लेती है;

उसकी उस भरी हुई आवाज़, 
में से भी मैं निकल ही लेता हूँ,
कुछ नज़्में और रच देता हूँ;

एक नयी प्रेम कविता जिसे 
सुनते ही वो खुद को रोक नहीं 
पाती है, और बस भागी दौड़ी 
चली आती है पास मेरे;

और उसे अपनी बाँहों में भर 
लेने के लिए, मैं भी खोल देता हूँ,  
अपनी दोनों बाहें;         

वो धुप सी आती है, छांव बनने 
की आस लिए पास मेरे, और मैं 
सूरज सा तपता दिन भर उसके लिए;

पर उस एक पल में उसके लिए,
मैं सूरज से चाँद बन जाता हूँ !

Thursday, 28 March 2019

ज़िन्दगी नामक किताब !

ज़िन्दगी नामक किताब !

ज़िन्दगी नाम की जो, 
ये किताब है इस किताब 
की ज़िल्द है माँ; 
हैं ना ?

जिस किताब की जिल्द 
है माँ तो उस किताब का 
शीर्षक है पिता; 
है ना ?

किताब का जिल्द जब फट 
जाता है, फिर उस किताब के 
पन्ने जल्द ही बिखर जाते है; 
है ना ?

अतः इस किताब के जिल्द, 
और शीर्षक को संभाल कर, 
रखने की जिम्मेदारी हमारी है; 
है ना ?

Wednesday, 27 March 2019

ख़रीद लेता है मुझ को !

छोड़ जाता है 
वो बिखरा कर ;
मेरे ही जिस्म 
में खुद को ,

फिर धीरे-धीरे 
खून पीता है 
वो मेरा ;

अंतत वो ही 
ख़रीद लेता है, 
मुझ को ;

मेरी ही निशानी 
दे कर मुझ को !

Tuesday, 26 March 2019

नशा सर्वनाश कर रहा !

नशा सर्वनाश कर रहा !

ये देख कर बूढ़ा बाप आज रो रहा ,
उसके बुढ़ापे के सहारे को ये नशा तोड़ रहा ;
किसी और से नहीं वो खुद से ही लड़ रहा ,
जो भी कल नशे का यार था बन रहा ;
कोई भी नशेड़ी बूढ़ा नहीं हो पा रहा ,
क्यों कि वो भरी जवानी में ही मर रहा ;
जहाँ - जहाँ आज नशे का प्रचार हो रहा ,
वहां - वहां कुंठित विवेक और विचार हो रहा ; 
जहाँ - जहाँ नशा मुक्ति का अभियान चल रहा ,
वहां - वहां तृप्ति और संतुष्टि घर कर रही ;
नशा ही आज खुद के नाश की जड़ हो रहा ,
खुद ही वो अपने घर में आग लगा रहा ;
जवानी सिगरेट और चरस पी कर खांस रही ,
तभी तो उसकी ज़िन्दगी मौत की भीख मांग रही ;
शराब , गांजा , और तम्बाकू क्या नहीं करवा रहा ,
तन , मन , और धन पर वो डाका डलवा रहा ;
जो अपनी सोच और समझ से इस से बच रहा ,
जीवन अपना सही मायने में वही तो जी रहा ;
इंसान वही जो इंसानियत के कर्तव्य निभा रहा ,
आज चरित्रवान भी वही पीढ़ी कहला रही ; 
जो किसी भी प्रकार के नशे को गले नहीं लगा रही !

Monday, 25 March 2019

अश्रु और अब्सार

अश्रु और अब्सार 

तुमसे गठबंधन की आस ने, 
लिए फेरे पुरे सात;  
मेरी अब्सार ने अश्रु के साथ !
  
एक एक कर सातों वचन, 
निभाने का वादा भी किया; 
अश्रु ने मेरी अब्सार से !

अब मेरे दिन सागर की, 
लहरों से और मेरी रातें;  
उपांत सी खींची जा रही है !

अब्सार पत्थर सी हो कर,  
टिक गयी है एक ही राह; 
के मुहाने पर !

जैसे बैठी थी अहिल्या, 
अपने "राम" के लिए; 
पत्थर की होकर !

उसके "राम" तो उसे छूकर, 
इफ़्फ़त कर गए अब बारी; 
है मेरे "राम" की !

Sunday, 24 March 2019

ये मेरी बरबस बरसती ऑंखें !

ये मेरी बरबस बरसती ऑंखें !

हर घड़ी दर्द की शिद्दत से, 
बिलखती है ये मेरी आँखें; 

हिज्र की आग में हर लम्हा, 
पिघलती है ये मेरी आँखें; 

एक लम्हे की खता हुई और,  
सारी उम्र का रोग लगा लिया;  

अब उस की सूरत को ही हैं, 
हर वक़्त तरसती ये मेरी आँखें; 

ख्वाहिश-ए-दिल में अब तक, 
मचलती है उसकी अदाएं; 

तेरी ख़ुश्बू से मुसलसल अब, 
ये महकती है मेरी आँखें; 

मेरे ख्वाबों में ठहरा हुआ है, 
अल्हड नदी का वो मंज़र; 

और उसी नदी किनारे हैं, 
अब भटकती ये मेरी आँखें; 

अब तो आग सी टपकती है, 
हर एक हिज़्र के मंज़र से; 

हिज़्र-ए-मंज़र की तपिश से ही,  
सुलगती है ये मेरी आँखें; 

मोहब्बत आबाद हुई या, 
हुई है नाकाम मेरी;  

रह गईं अहल-ए-वफ़ा मुँह देखते, 
तभी तो बरसती ये मेरी आँखें;

कभी सामने पा कर भी उसे, 
उसे ही ना देखने की मज़बूरी;  

गर ये हक़ीक़त हो जाए "राम" 
तो फिर संभाले नहीं संभालती ये मेरी ऑंखें !

Saturday, 23 March 2019

ज़िन्दगी का निवाला !

ज़िन्दगी का निवाला !

आंसुओं को अपनी ज़िन्दगी का, 
निवाला समझकर ही तो अब तलक,  
अपनी आँखों से ही पीया है मैंने; 

दिल की लगी को अब तलक, 
अपने ही दिल में कुछ इस तरह 
पनाह दी है मैंने;  

तुम नहीं हुए हो मेरे अब तलक, 
पर किसी गैर के साथ भी तो अभी 
तलक तुम्हे देखा नहीं है मैंने;

तभी तो तुम को अब तलक नहीं खोया है, 
मैंने मगर ये भी याद रखना तुम की तुम्हे, 
अब तलक पाया भी नहीं है मैंने;

मेरा दिल तो ज़ख़्मी ही है पहले से,  
इसे तू दुखी और ना कर ऐ ज़माने, 
तेरा लिहाज़ ही तो अब तलक किया है मैंने;  

मुझ से मिलते हैं वो ही दुश्मनो की तरह, 
जिस किसी को भी अपने दिल का अब तलक, 
ये जख्म सिला हुआ दिखाया है मैंने;  

सर झुकाए बैठा हु अब तलक, 
हर एक लम्हा में ऐ ख़ुदा तुझ को ही तो, 
हर एक ज़र्रे में पाया है मैंने !  

Friday, 22 March 2019

मेरे उमंगो का फागुन !

मेरे उमंगो का फागुन !
••••••••••••••••••••••• 
प्रभातकाल के चित्‍ताकर्षक दिनकर 
सा ही तो है मेरा प्रेम, 
जो आकांक्षा के अभीष्ट का रक्तवर्ण, 
लिये निकलता है प्रतिदिन; 
तुम्हारे अस्तित्व के आसमान पर,
अपनी धरा को हर हरा रखने की,
अभिलाषा लिए 
हरित और गाढ़ा है 
मेरे उमंगो का फागुन;
तभी तो अभी तक नहीं लगने दिया, 
कोई और रंग अब तक तुम पर, 
क्योकि जो रंग उतर जाए धोने से, 
वह रंग भी भला कोई रंग होता है क्या; 
मैं तो रंगूँगा तुम्हें अपने प्रेम के सुर्ख रक्तवर्ण से, 
जो कभी छूटेगा नहीं,
 फिर इसी रक्तवर्ण के रंग में, 
लिपट कर तुम आओगी मेरे घर,
 और इसी सुर्ख रक्तवर्ण में लिपटे जायेंगे,
 भी दोनों साथ एक जोड़े में; 
ये रंग जो जन्मों तक अक्षुण्ण रहेगा, 
रंगो के अनगिनत समन्दर समाए होंगे,
मेरी उस छुअन में जो तुम, 
अपने कपोलों पर हर दिन महसूस करोगी; 
तब सैंकड़ो इंद्रधनुष सिमट आऐंगे, 
तुम्हारी कमनीय काया पर तब, 
मैं बजाऊँगा उस दिन चंग और, 
तुम गाना अपने प्रेम का अमर फाग; 
लोग पूछे तो गर्व से कहना उस दिन, 
अपने प्रेम का रंग आज डाला है मेरे "राम" ने मुझ पर ! 

Thursday, 21 March 2019

अहम् का दहन !

अहम् का दहन ! 
•••••••••••••••••• 
आओ हम करे दहन ,
आज अपने अपने अहम् का ,
जैसे भक्त प्रह्लाद ने किया था; 
होलिका के अहम् का ! 
उसी अग्नि कुंड में जिसमे ,
उसने अपने ईश के आशीर्वाद ,
का चादर ओढ़ कर सोचा था ;
प्रह्लाद का दहन करने का ! 
आओ हम पाए संकेत ,
उठते इस अग्नि कुंड के धुंवे से ,
अपने अपने प्रदेश के भविष्य की तस्वीरें; 
गर देखो दहन के धुंवे को सीधा,
आकाश की ओर उठता हुआ तो, 
समझ लेना ये संकेत है ; 
सत्ता परिवर्तन का !

गर देखो दहन के धुंवे को दक्षिण,
दिशा की ओर जाता हुआ तो समझना ,
ये संकेत है कोई अपने प्रदेश में आने 
वाली विपदा का ! 
गर देखो दहन के धुंवे को पूर्व,
दिशा की ओर जाता हुआ तो ,
समझना ये संकेत है प्रदेश में सुख संपन्नता की बरसात का ! 
गर देखो दहन के धुंवे को उत्तर, 
दिशा की ओर जाता हुआ तो समझना ,
समझना ये संकेत है सच के रास्ते पर चलकर ;
अकूत धन धान्य और स्वस्थ स्वास्थ पाने का !

बस करना विस्वास वैसा ही जैसा किया था ,
भक्त प्रह्लाद ने अपने नरसिंघ भगवान् पर ,
आओ हम करे दहन आज अपने अपने अहम् का ;
जैसे प्रह्लाद भक्त ने किया था होलिका का ! 

Wednesday, 20 March 2019

मेरा इश्क़ !

मेरा इश्क़ 
••••••••••••• 
इश्क मेरा हर्फों, 
में उतरता रहा; 

मैं पागल था, 
उम्र भर लिखता रहा ;

छू रहे थे हर्फ,
लोगों के दिलों को मगर ;

मैं बस चंद वाह,
वाही लूटता रहा; 

अगर भूख होती तो, 
कब की मिट गई होती, 

मैं था मोहब्बत का प्यासा, 
रेगिस्तान में द्रव्यवती ढुंढता रहा ;

बदलते है लोग यहां,
मौसमों की ही तरह;

रंग मेरा भी निखरा पर,
मैं उसके रंग में ढलता रहा; 

उसको जल्दी थी,
उसने बदल ली मंजिल मगर,

मैं समंदर की ही तरह,
अपनी नदी का इंतजार करता रहा !

Tuesday, 19 March 2019

ओ मां

ओ मां,

अपनी जननी को,
मुरझाया फूल थमा 
कर आया हूं ;

अपनी प्रिया के, 
हाथों की चूड़ियां
उसी के हाथों में, 
तोड़कर आया हूं ;

बस तेरी छाती का, 
दुध कभी ना सूखे,
मेरे किसी भाई के, 
लिए इसीलिए; 

उनदोनों के जन्मसिद्ध 
अधिकार को तेरे ऊपर  
वार कर आया हूं !

Monday, 18 March 2019

वापस कोई नहीं आता !

वापस कोई नहीं आता !
••••••••••••••••••••••••••  

जिस्म के रास्तों से गुज़र कर, 
रूह की आरज़ू में जो भी बसा; 

वो वापस कभी ना आया !

रूह के अकेलेपन में उलझ कर, 
रूह की आरज़ू में जो भी निकला; 

वो वापस कभी ना आया !

लोग फिर भी ये देखकर,  
समझते क्यूँ नहीं हैं; 

जो गया वो वापस कभी ना आया !

लोग फिर भी ये देखकर,  
स्वीकारते क्यूँ नहीं करते हैं;  

जो गया वो वापस कभी ना आया !

जिस्म के रास्तों से गुज़र कर, 
रूह की आरज़ू में जो भी बसा !

Sunday, 17 March 2019

ख़्वाब की क़िस्मत !

ख़्वाब की क़िस्मत !
•••••••••••••••••••••  
मोहब्बत प्रेम के 
लम्हे छुपाए; 

मुझसे एक 
अजीब से लहज़े में;  

एक सवाल 
बार-बार पूछती है;  

अगर हर 
ख़्वाब की क़िस्मत में; 

बिखर जाना 
ही लिखा होता है; 

तो ये आँखें 
ख्वाब देखती ही क्यूँ हैं !

Saturday, 16 March 2019

जुदा धड़कने !

जुदा धड़कने !
••••••••••••••• 
वो दोनों इकट्ठे रहते हैं, 
इकट्ठे सोते हैं, 

उनके दुख सुख एक हैं, 
उनकी आँखें एक दूसरे के 
ख़्वाब भी देख लेती हैं; 

वो कहीं भी हों, 
एक दूसरे के नामों से 
जाने जाते हैं; 

उनके घर आने वाले, 
अपनी दस्तक में दोनों 
का नाम शामिल कर लेते हैं; 

दिन के पहले हिस्से में, 
उनकी आँखें एक दूसरे 
को ख़ुश-आमदीद कहती हैं; 

उनकी साँसों की रिदम, 
उनके जिस्म की हरकत से, 
एक दूसरे के होने का इत्मिनान 
दिलाता है; 

वो अक्सर अब,
एक दूसरे की नींद सो लेते हैं, 
लेकिन इन सब के बावजूद; 

अक्सर गहरी रातों में, 
उनके दोनों दिल अपने 
अपने सीनों में अलग अलग 
धड़कते हुए सुनाई देते हैं;  

जबकि वो दोनों 
इकट्ठे रहते हैं, 
इकट्ठे सोते हैं !

Friday, 15 March 2019

ह्रदय आंगन !

ह्रदय आंगन !
••••••••••••••• 
एक घना पेड़ है तुम्हारे ह्रदय 
के विशाल आँगन के बीचों-बीच में;  

जिस की छाँव में सुस्ताने 
की मेरी दिली ख़्वाहिश है; 

मेरी लिखी क़िस्मत को अब 
तुम कुछ इस कदर संवारों की;

उस की जो शाख़ें मेरे दिल के  
आंगन से बाहर फैली है;

वो आँगन में आकर सिमट जाए 
ताकि उस आँगन में धूप बरसती है;

वो छांव में तब्दील हो जाए ताकि  
उसकी छांव में मैं सकूँ से सुस्ता सकू !

Thursday, 14 March 2019

क्यों लम्हें बिखरे है !

क्यों लम्हें बिखरे है !
•••••••••••••••••••••• 
एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों रात की ये कालिमा है;
क्यों किरणों से तपता ये दिन है ! 

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों आसमान गुमसुम सा है;
क्यों हवा रूखी-रूखी सी है !

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों लम्हें बिखरे बिखरे से हैं;
क्यों यादों के प्रतिबिम्ब ओझल से है ! 

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों आँहे कुछ यूँ बरबस सी है; 
क्यों दिन उदास-उदास से है !

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों सुबह की ख्वाइश अधूरी है;
क्यों लेटे रहना अब मुश्किल है !

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों अकेले चलते रहना भारी है;
क्यों ये पदचिन्ह भी भटके भटके है ! 

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों हर एक पल आँखों से ओझल है;
क्यों मेरी परछाईं स्थिर सी है !

एक सिर्फ तेरे बिना,
क्यों अब तस्वीरें चुभती सी हैं;
क्यों सिमट रहा जीवन प्रतिदिन है !

Wednesday, 13 March 2019

सबल समृद्ध नारी है वो !

सबल समृद्ध नारी है वो !
•••••••••••••••••••••••••• 
तू जिसको कभी कहता था, 
वो तेरी सखी और सहेली है;
  
खुद-ब-खुद से ही वो बात करती,  
आज वो खुद की ही सहेली है;
  
आखिर कब तू उसको जानेगा, 
क्या ऐसी वो अनसुलझी पहेली है;

हर एक दुःख और दर्द वो झेली है, 
आज वो दर्द की बिसात पर फैली है;

तेरे जंहा को जो महकाती है,
वो वही चंपा और चमेली है;

अपनी परिधि में जो समेटे तुझे, 
वो उन्ही उठे हाथों की दुआ है;

जिसमे निकलता तो सारा जंहा है, 
फिर भी आज वो क्यों रहस्मय हवेली है ?

करे वो जो तेरे भी बस में नहीं है,
हाँ वो आज की सबल समृद्ध नारी है; 

फिर भी आज वो दूसरी पसंद क्यों है,  
गर वो दुर्गा है तो सिर्फ नौ दिन की क्यों है ?  

Tuesday, 12 March 2019

कुदरत का नज़ारा !

कुदरत का नज़ारा !
••••••••••••••••••••• 
जो न होता कुदरत में, 
सूरज का ताप और बादलों 
की नमी का नजारा;

तो बताओ कैसे रहता, 
धरती के आँचल का रंग 
इतना हरहरा और प्यारा; 

दिल में जलती सूरज 
सी आग और नयनों से, 
टिप टिप होती बस बरसात;

कुदरत के रंग सा ही तो 
होता है, इस मोहब्बत का  
भी मौसम और नज़ारा;

लेकिन शायद कहने और 
करने की, जिसमे सारी हदें 
टूट जाती है, वही तो बेइंतेहा 
मोहोब्बत कहलाती है !

Monday, 11 March 2019

भावों की स्याही !

भावों की स्याही ! 
••••••••••••••••••
मेरे भावो को स्याह, 
स्याही से उतारता हु;

तुम्हारे दिल के कोरे, 
कागज़ पर कुछ इस तरह;
  
कि वो उतर कर तेरे दिल, 
पर उसे फूलों सा महका दे; 

तुम्हारे पुरे मन आँगन को,
ऐसा अकसर मैं तब करता हु;

जब अकेलापन मुझे आ, 
घेरता है और मेरी सांसें थोड़ी; 

मद्धम-मद्धम होने लगती है, 
तब कुछ सांसें उधार लेता हु;

तुम्हारे महकते उसी मन, 
आँगन से थोड़ा और जीने की; 

आस अपने दिल में जगाता हु, 
ताकि मेरे भाव तुम पर प्रेम पुष्प 
बरसा सके ;

इसलिए मेरे भावो को स्याह, 
स्याही से तेरे दिल के कोरे, 
कागज पर उतारता हु !

Sunday, 10 March 2019

निर्भय प्रेम हमारा !

निर्भय प्रेम हमारा !
••••••••••••••••••••• 
एक मात्र भाव है, 
जो मुक्त है, 
हर द्वन्द से;

सर्वोपरि, 
सर्वश्रेष्ठ पाक, 
प्रेम तुम्हारा;

सीमाहीन है,
इसको दायरों में, 
बांधा नहीं जा सकता;

दृश्य भी है, 
महसूस भी किया 
जा सकता है, 
प्रेम मेरा;

अमर है कभी, 
दम नहीं तोड़ेगा,
अजेय है कभी, 
घुटने नहीं टेकेगा; 

किसी भी परिस्थिति 
में अडिग,निर्भय,   
प्रेम हमारा !

Friday, 8 March 2019

मखमली स्मृतियाँ !

मखमली स्मृतियाँ !
••••••••••••••••••••• 
दौड़ती भागती सी इस 
मेरी ज़िन्दगी में ;

तेरे प्रेम की लहरों के 
सिक्त किनारों पर ही, 
कुछ पल ठहराव के मिलते है;

उन्ही पलों में सोचता हु,   
तुम्हारे प्रेम को सौपूँ कुछ हर्फ़, 
तब बर्षों से दबी मेरी प्यास को 
और पिपासित पाता हु ; 

तब कोलाहल मचाते मेरे 
भाव मांगते है, मुझसे कुछ 
हर्फ़ उधार ;
  
और जब मैं उनके लिए 
गढ़ता हूँ कुछ हर्फ़ तो 
मेरे भावों की बूंदें तेरी
प्रेम पिपासित धरा को 
भी भिंगो देती हैं;

और फिर मैं मेरी तन्हाइयों  
को तेरी मखमली तन की 
स्मृतिओं में लपेट कर 
सुला देता हु !

Thursday, 7 March 2019

वो कोई और नहीं इश्क़ है !

वो कोई और नहीं इश्क़ है !
•••••••••••••••••••••••••••• 
सलामती उसी की मांगता हैं इश्क़ , 
जिसने खुद उजाड़ा है उसको ;
तुम सिर्फ इतना बता दो मुझ को ,
क्या ये ठीक है कि इसी को कहता हु मैं इश्क़ ! 

सारी उम्र अपना कसूर ढूँढता रहा इश्क़ ;
और फिर ज़िदगी भर उसी कसूर वार ,
मोहब्बत को ढूँढता रहा वही नादान इश्क़ !

कोई तो है आज भी मेरे अंदर ,
जो मुझ को संभाले हुए अब तलक ; 
यही सोचता हुआ वो उसे पुकारता रहता है , 
रात और दिन और बेक़रार होकर भी ;
बरक़रार रखा हुआ है खुद को अब तलक  ;
तुम सिर्फ इतना बता दो मुझे वो इश्क़ है या नहीं !

लगता है भूल गयी है शायद मोहब्बत मुझे , 
या फ़िर कमाल का सब्र रखती है वो ;
लेकिन तुम ये तो बता दो मुझे ,
तेरा दिल धड़कता है अब तलक ;  
या वो भी पत्थर का रखती हो तुम !

Wednesday, 6 March 2019

जय हिन्द_2 !

जय हिन्द !
••••••••••••
देश की आज़ादी के सूरज को  
कभी छुपने नहीं देंगे हम;

वीर जवानों की शहादत को 
कभी जाया ना जाने देंगे हम;

जब-तक है इस तन में लहू, 
माँ भारती तेरे आंचल पर हम 
किसी ना-पाक के पैर नहीं पड़ने देंगे !   

Tuesday, 5 March 2019

जय हिन्द !

जय हिन्द !
•••••••••••• 
इकबाल-ए-मौत की आरज़ू ने उसे
इतना उत्साहित कर दिया कि, उस   
दिन से दुश्मनो की गिनती पर दिन 
और रात ग़ौर करने लगा ! 

इंतेक़ाम के लिए वो सीमा पर चल दिया ,
अपने हिस्से की जिम्मेदारी जब पूरी कर चुका; 
तब उसने कल की तारीख़ पर भी अपना नाम  
ख़ुशी-ख़ुशी से लिख दिया !

एक तारीख पर अपना सर दूसरी तारीख पर, 
अपना जिगर रख कर अपने मंसूबों को; उसने 
बड़े गर्व से जाहिर कर दिया !

उस की अपनी पसंद की तारीख चुनी थी,  
वादियों के कोने कोने से मिटा दिए; उसने 
सारे ना पार्कों के निशाँ थे !

वादियों में दूर तक चलती पुरवईयाँ हो,  
हर एक दिल में सकूँ के बादल उमड़े बस;  
यही उसका एक मात्र मंसूबा था !

इकबाल-ए-मौत की आरज़ू ने उसे इतना 
उत्साहित कर दिया था कि उस दिन वो 
चुन-चुन कर दुश्मनो का खात्मा करने 
की सौगंध खा कर गया था ! 

Monday, 4 March 2019

सुनो ओ वीरों !

सुनो ओ वीरों !
••••••••••••••••
राष्ट्र के जवानों , 
मेरे देश के वीरों 
देश की आन पर, 
तुम आँच ना आने देना;

जिन जबाज़ों ने 
अपने लहू से नहलाया,  
ये वतन का तिरंगा है;

उन वतन के लाड़लों 
के लहू को तुम कभी 
बेज़ार जाने मत देना;

मेरे देश के जवानों  
उनकी याद को, 
तुम अब भुलाने  
मत देना;

अब कभी तुम इस 
देश की आन -बान- 
और शान पर आँच 
आने ना  देना !

Sunday, 3 March 2019

जय हिन्द !

जय हिन्द !
••••••••••••
पराक्रम का ढोल बजता है,
जिसका सरेआम सारे जहां 
के आसमां में; 

वही वो देश है जिसके लोग, 
उसकी भूमि को जय-जय, 
भारत-भूमि कहते है;

और एक वो ना-पाक ढोंगी है,  
जिसका ढोल खुद-ब-खुद अपनी 
ही भूमि के पहलू में सिसकता है !

Friday, 1 March 2019

वीर जाबांज़ सपूतों !

वीर जाबांज़ सपूतों !
••••••••••••••••••••• 
भारत तेरे वीर जाबांज़, 
सपूतों ने अपने रक्त से, 
अपने ही अदम्य साहस, 
कि अमर गाथा लिखी है,

उठो ओ वीर जाबांज़ सपूतों, 
अब तुम्हे ही नए सुदृढ़ भारत, 
का निर्माण करना है;

ओ जांबाज़ जवानों उठो, 
तुम्हें बस उस इतिहास,  
को दोहराकर जीत का, 
विगुल बजाना है,

उठो ओ वीर जाबांज़ सपूतों, 
अब तुम्हे ही नए सुदृढ़ भारत, 
का निर्माण करना है;

ओ पावन धरा के तरुणों,  
जन-जन के जीवन में फिर, 
से नई स्फूर्ति नई जान नए  
प्राण भरना है;

उठो ओ वीर जाबांज़ सपूतों, 
अब तुम्हे ही नए सुदृढ़ भारत, 
का निर्माण करना है;

आओ वीर जाबांज़ सपूतों, 
अब तुम्हें भी अपने रक्त, 
से उसी अदम्य साहस से, 
फिर वही विजय गान गाना है !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !