नशा सर्वनाश कर रहा !
ये देख कर बूढ़ा बाप आज रो रहा ,
उसके बुढ़ापे के सहारे को ये नशा तोड़ रहा ;
किसी और से नहीं वो खुद से ही लड़ रहा ,
जो भी कल नशे का यार था बन रहा ;
कोई भी नशेड़ी बूढ़ा नहीं हो पा रहा ,
क्यों कि वो भरी जवानी में ही मर रहा ;
जहाँ - जहाँ आज नशे का प्रचार हो रहा ,
वहां - वहां कुंठित विवेक और विचार हो रहा ;
जहाँ - जहाँ नशा मुक्ति का अभियान चल रहा ,
वहां - वहां तृप्ति और संतुष्टि घर कर रही ;
नशा ही आज खुद के नाश की जड़ हो रहा ,
खुद ही वो अपने घर में आग लगा रहा ;
जवानी सिगरेट और चरस पी कर खांस रही ,
तभी तो उसकी ज़िन्दगी मौत की भीख मांग रही ;
शराब , गांजा , और तम्बाकू क्या नहीं करवा रहा ,
तन , मन , और धन पर वो डाका डलवा रहा ;
जो अपनी सोच और समझ से इस से बच रहा ,
जीवन अपना सही मायने में वही तो जी रहा ;
इंसान वही जो इंसानियत के कर्तव्य निभा रहा ,
आज चरित्रवान भी वही पीढ़ी कहला रही ;
जो किसी भी प्रकार के नशे को गले नहीं लगा रही !