Thursday, 29 November 2018

तुम्हे रब में विश्वास नहीं !

तुम्हे रब में विश्वास नहीं !
•••••••••••••••••••••••••••
जब-जब तुमने पूछा मुझसे 
"राम" मैं तुम्हे कैसी लगती हु
तब-तब मैंने यही तुमसे बोला  
तुम मेरे रब सी ही दिखती हो 
क्योंकि मैंने जब भी तुमको
अपनी प्रेममय आँखों से देखा 
तुझमे मैंने उस रब को देखा  
जो प्रेम में होते है उन्हें इस 
धरा के कण कण में भगवान 
बसे दिखाई देते है और जो 
प्रेम में नहीं होते उनको इंसानो 
में भी कोई सुन्दर और कोई 
बदसूरत दिखाई देता है पर 
मैंने कभी पूछ कर नहीं देखा  
बोलो मैं तुम्हे कैसा लगता हू 
चलो आज तुम बतलाओ मुझे
मैं तुम्हे कैसा लगता हु 
गर तुम्हारा जवाब है हां मुझे  
भी तुझमे एक रब दिखता है
तो ये बतलाओ तुम मुझे की 
कोई कैसे खुद को उस रब से 
दूर रख सकता है भला क्या तुम्हे 
उस रब में विश्वास नहीं बोलो ? 

Wednesday, 28 November 2018

मेरे विस्तार की साख !

मेरे विस्तार की साख !
•••••••••••••••••••••••
मैं तो जब भी 
करती हूँ तुमसे 
बातें तब ही अपने 
आप को पूर्णतः पा 
लेती हूँ उसमे ना कोई
दिखावा,ना कोई छलावा
ना ही बनावट ना किसी   
तरह की कोई सजावट 
उस पल तो मैं बस अपने 
मन की परतों को खोलती 
जाती हूँ और तब तुम भी 
मेरे साथ-साथ मंद-मंद 
मुस्कुराते हो सिर्फ अपने 
होंठो के कोरों से और मेरी 
मस्ती मेरी चंचलता मेरा 
अल्हड़पन मेरा अपनापन 
मेरा यौवन तुम थाम लेते हो 
अपने हांथो में तब मैं सिहर 
उठती हूँ दूजे ही पल नाज़ुक 
लता सी लिपट जाती हूँ तुमसे 
मानकर तुम्हे अपने स्वयं के 
विस्तार की साख ! 

Tuesday, 27 November 2018

तुम्हारे अधरों की सुवास !

तुम्हारे अधरों की सुवास !
•••••••••••••••••••••••••••
सुनो ये जो चाँद है 
ना ये जब आसमान 
में नहीं दिखता तब 
भी चमकता है कंही 
ओर जैसे मेरी नींद 
मेरी आँखों में नहीं 
होती तो भी वो होती है 
वंहा तुम्हारी आँखों में 
क्योकि वो जिस डगर 
से चलकर आती है ठीक 
उसके मुहाने पर ही बैठी 
रहती है तुम्हारी वो दो 
शैतान बड़ी-बड़ी और 
कारी-कारी आँखें और 
वही तुम्हारी ऑंखें मेरी 
आँखों की नींद को धमका 
कर रोक लेती है अपनी ही 
आँखों में और फिर पूरी रात 
मैं जगता हुआ तुम्हारे अधरों 
की सुवास की कोरी छुवन को 
अपनी आँखों की किनारी से 
उतर कर मेरे आंगन में एक 
लौ की तरह टिमटिमाते हुए 
देखने के लिए मेरी ज़िन्दगी 
के स्वरुप में जंहा तुम अंकित 
होती हो मेरे जीवन पृष्ठ पर 
मेरी ही ज़िन्दगी के रूप में !

Monday, 26 November 2018

रिश्तों का कारवां !

रिश्तों का कारवां !
••••••••••••••••••

एहसासों की पगडंडियों 
पर रिश्तों का कारवां 
उम्मीदों के सहारे आगे 
बढ़ता जाता है लेकिन 
जिस दिन से एहसास 
कम होने लगते है, 
उस दिन से उम्मीदें
स्वतः ही दम तोड़ने 
लगती है और ज़िन्दगी 
की वो ही पगडंडियां जो 
कारवों से भरी रहती थी, 
वो उमीदों के रहते हुए भी 
अचानक सुनसान नज़र 
आने लगती है और ये 
उम्मीदें जो दबे पांव 
आकर हावी हुई रहती है, 
रिश्तो की डोर पर वो 
डगमगाने लगती है, 
लेकिन जो रिश्तों की 
डोर बुनी होती है, 
मतलब के धागों से 
वो टूट जाती है क्योंकि 
डोर होती है बुनी उसी 
विश्वास के धागो से 
जो बोझ उठा लेता है, 
उन सभी रिश्तों की 
उमीदों का !

Sunday, 25 November 2018

एक नयी कहानी बुन लू !

एक नयी कहानी बुन लू !
•••••••••••••••••••••••••• 
आ आज पास तू मेरे
तुझे कुछ अपनी सुनाऊ
और कुछ तेरी सुन लू; 

सपने जो अधूरे है तेरे 
आ आज उनको फिर से 
अपनी पलकों से चुन लू;

मैं जो लिखता रहता हु 
इतना कुछ सिर्फ तुम पर 
आ आज फिर कोई नयी 
नवेली सी एक धुन चुन लू;

रिमझिम-रिमझिम सी 
इस इस ओस की रुत में
बावरा मेरा मन जो खोजे
आ आज तेरी खुली आँखों 
से एक नया स्वप्न देख लू;

आ आज फिर पास तू मेरे 
की अपने प्रेम की एक नयी 
कहानी मैं बुन लू !   

Saturday, 24 November 2018

कुछ तो शेष रह जाये !

कुछ तो शेष रह जाये !
••••••••••••••••••••••• 

स्वाभिमान का दम्भ 
भरने वाला वो लड़का 
कैसे और क्यों तुम्हारी 
इतनी लापरवाहियां के 
बावजूद भी बंधा है अब
-तक तुम्हारे मोह-पाश में;

कैसे और क्यों तुम्हारी 
इतनी बेपरवाहियों के 
बावजूद भी उसके इश्क़ 
का रंग अब-तक फीका 
फीका नहीं पड़ा; 
  
कैसे और क्यों तुम्हारी 
इतनी नजरअंदाज़ीयों के 
के कारण वो तुमसे खफा  
होकर चला तो जाता है तुमसे  
कोसों दूर फिर भी क्यों लौट 
आता है वो हर शाम फिर से  
एक बार तुम्हारे पास;

देखो शायद उसने अब गिरा दी है 
अपने उसी स्वाभिमान की ऊँची-
ऊँची दीवारें जिसका वो पहले हर
पल यु दम्भ भरता फिरता था;

इसलिए ही तुम्हारी सारी 
लापरवाहियां,बेपरवाहियाँ,
और नज़रअंदाज़ीयाँ दीवारों 
के उस पार निकल जाती है;

पर सुनो इतना ख्याल रखना 
कुछ तो शेष रह जाये उसमे 
पहले जैसा वर्ण कंही ऐसा ना
हो की एक दिन तुम ही उसे 
पहचान ना पाओ इतने सारे 
बदलाव के बाद !  

Friday, 23 November 2018

प्रेम होता है अलौकिक !



प्रेम होता है अलौकिक ! ••••••••••••••••••••••••• कैसे लौकिक इंसान का लौकिक प्रेम भी अलौकिक हो जाता है; वो सारे सितारे जो इतनी दूर आसमां की गोद में टिमटिमाते हुए भी; गवाह बन जाते है, उन प्रेमी जोड़ियों के जो सितारों के इतने दूरस्थ होने के बावजूद भी; उनकी उपस्थिति को अपने इतनी निकट स्वीकारते है की; अपनी हर बात को एक दूजे के कान में फुसफुसाते हुए कहते है; वो सितारे जो आसमां की गोद में अक्सर ही टिमटिमाते रहते है; वो ही इन प्रेमी जोड़ों के प्रेम के अलौकिक गवाह बन जाते है; इस लोक के प्रेम को अलौकिक प्रेम का  दर्जा दिलाने के लिए ! 

Thursday, 22 November 2018

शाम खाली हाथ लौट गयी !

शाम खाली हाथ लौट गयी !
•••••••••••••••••••••••••••••
वो तुम्हारे वादे वाली 
शाम कब की आकर,
खाली हाँथ लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर उसके पीछे-पीछे 
सितारों वाली उजियारी,
रात भी बिन गुनगुनाये 
ही भरे दिल से लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर एक नयी आस वाली 
भोर आयी जो किसी को बिन, 
कुछ बताये उनमुनि सी लौट गयी; 

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

फिर एक नयी दोपहर भी उन 
सब की ही तरह बैरंग लौट गयी 
और उसके ठीक पीछे-पीछे वही 
तुम्हारे वादे वाली शाम आयी;

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

काफी देर इधर-उधर अकेली 
टहलती रही और टहलती रही 
फिर थक कर के कुछ देर अपने
घुटनों में सर छुपाये भी बैठी रही;

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

काफी देर ढीठ की तरह बैठी रही
पर रात जब उसके सर पर आकर 
खड़ी हो गयी तब बे-मन से कुछ 
मन ही मन बड़बड़ाते हुए लौट गयी !  

सुनो तुम्हे पता है क्या ?

गर ना हो पता तो कर लो पता
मुझे नहीं लगता अब वो शाम फिर
कभी लौट कर आएगी तुम्हारे द्वार !   

Wednesday, 21 November 2018

क्या कभी तुमने सोचा है !

क्या कभी तुमने सोचा है !
•••••••••••••••••••••••••
क्या कभी तुमने भी 
ऐसे सोचा है;

तेरा नाम, तेरा ख्याल 
मेरे दिल-ओ-दिमाग को
एक सकूँ दे जाता है; 

क्या कभी तुमने भी 
ऐसे सोचा है;

कभी-कभी मैं ये भी 
सोचता हु की तेरे साथ
मेरे सपनो का भी एक 
रिश्ता है;

क्या कभी तुमने भी 
ऐसे सोचा है;

तेरा एक ख्याल मेरे खाली  
पड़े मन को अचानक ढेरों 
सपनो से भर देता है;

क्या कभी तुमने भी 
ऐसे सोचा है;

तेरा साथ मुझमे सदा 
कुछ-ना-कुछ भर देता है;

क्या कभी तूने भी 
ऐसे सोचा है बोलो 
बोलो ना क्या सच में 
तुमने कभी ऐसे सोचा है !  

Tuesday, 20 November 2018

दर्द इश्क़ और मोहोब्बत !

दर्द इश्क़ और मोहोब्बत !
••••••••••••••••••••••••••

दर्द इश्क़ और मोहोब्बत 
शायद एक ही दिन पैदा 
हुए थे तभी तो तीनो के 
गुण और धर्म एकदम 
मिलते जुलते से है;

इश्क़ दर्द से पीछा छुड़ाने 
जब भी जाता है संकटमोचन
के द्धार तो वो उसे उसके हाथ
सौंप देते है आशीर्वाद के
स्वरुप  एक पता ;

इश्क़ ढूंढता उस पते को 
जब पहुँचता है एक द्धार
तो पाता है वंहा करता पहले
से किसी को उसका इंतज़ार;

इश्क़ जब प्रकट करता है 
उसके सामने वंहा आने का 
अभिप्राय तब वो बताती है 
उसे वंहा अपने आने का अभिप्राय;

दोनों आते है वंहा अपने अपने
दर्द से पाने को छुटकारा दर्द
इश्क़ और मोहोब्बत दोनों से 
दूर हो जाता है उनके अलग 
अलग विश्वास से आज्ञा पाकर !  

Sunday, 18 November 2018

सच कहा था तुमने !

सच कहा था तुमने !
•••••••••••••••••••••
तुम जरा भी 
परेशान रहो 
या तकलीफ में रहो 
या तुम्हे कोई भी 
दुःख या दर्द हो 
तो मुझसे सहा 
ही नहीं जाता 
ऐसा लगता है 
की काश
तुम्हारी 
हर तकलीफ
हर दर्द 
हर परेशानी 
मैं ले लू 
और आज तक 
ली भी है 
पर सुनो 
जब तुम 
मेरे लिए
परेशान होती 
हो ना 
तो सच में 
मुझे बहुत ही  
अच्छा लगता है ! 

Saturday, 17 November 2018

तुम्हे कराह सुनाई नहीं देती !

तुम्हे कराह सुनाई नहीं देती !
••••••••••••••••••••••••••••••

तुम बात करती हो 
मेरे घर के दरवाज़ों 
और मेरे घर की खिड़कियों 
के खड़खड़ाने की जो दिख 
जाती है तुम्हे पर तुम ये तो 
बताओ की तुम्हे मेरी इस रूह 
की कराह सुनाई क्यों नहीं देती;

या तुम इंतज़ार कर रही हो 
मेरा की कब मैं अपने ही वक्ष 
को अपने ही हाथों चीरकर क्यों 
दिखला देता तुम्हे की देखो इसमें
कितनी कराह छुपी है;

तुम बात करती हो 
मेरे घर के दरवाज़ों 
और मेरे घर की खिड़कियों 
के खड़खड़ाने की जिसकी  
आवाज़ें तो सुन जाती है 
तुम्हे पर ये तो बताओ तुम 
की तुम्हे इस हृदय की पीड़ा 
सुनायी क्यों नहीं देती; 

या इंतज़ार कर रही हो 
उन धड़कनो का जो धड़क 
धड़क कर एहसास दिलाती है 
मुझे मेरे जीवित होने का उनके 
रुक जाने का स्वतः ही;

तुम बात करती हो 
मेरे घर के दरवाज़ों 
और मेरे घर की खिड़कियों 
के खड़खड़ाने की जिसकी  
आवाज़ें तो सुन जाती है 
तुम्हे पर ये तो बताओ तुम 
क्या तुम्हे नहीं दिखते वो मेरे 
अधूरे स्वप्न जो दिन ब दिन 
उम्र पा कर बूढ़े हो रहे है; 

या इंतज़ार कर रही हो 
उस घडी का जब ये चलने 
फिरने के काबिल नहीं रहेंगे 
या उस वक़्त का जब इनके  
घुटनो को बदलवाने का 
वक़्त आ जायेगा !

Friday, 16 November 2018

मिलन की बेला आने वाली है !

मिलन की बेला आने वाली है !
••••••••••••••••••••••••••••••••
दिन गर्म और रातें ठंडी 
होने लगी है लगता है जैसे 
दिन और रात के मिलन
की बेला आने वाली है ; 

दिन गर्म और रातें ठंडी 
होने लगी है तभी तो देखो 
दोनों आतुर दिखने लगे है, 
मिलने एक दूजे को;

दिन गर्म और रातें ठंडी 
होने लगी है तभी तो देखो 
दिन सुलगने लगा है बनकर 
सिन्दूर उमस का रात पर टपकने को;

दिन गर्म और रातें ठंडी 
होने लगी है तभी तो देखो 
ना आसमां खामोश रहने लगा है;
और रात करहाकर ढकने लगी है 
ओस का आँचल अपने तन पर;

दिन गर्म और रातें ठंडी 
होने लगी है लगता है जैसे 
दिन और रात के मिलन की 
बेला आने वाली है;
    
दिन गर्म और रातें ठंडी 
होने लगी है तभी मैं भी
ताकने लग जाता हु तुम्हारी
ओर पूरी की पूरी रात यु ही 
दिन की तरह तुम पर झरने को ! 

Thursday, 15 November 2018

सच कहा था तुमने !

सच कहा था तुमने !
•••••••••••••••
सच कहा था तुमने 
शब्द बोलते है मेरे,

लेकिन क्या पता है 
तुम्हे कब बोलते है 
वो शब्द मेरे;

सुनो वो बोलते है 
जब तुम उन्हें अपने
कंठ लगाती हो;

तुम्हारे कंठ लगकर 
शब्द मेरे जैसे मुखर 
हो उठते है;

जब तुम उन्हें प्यार
से सहला देती हो तो
सुप्तावस्था से जागृत
हो उठते है वो;

और पाकर तुम्हारा 
स्पर्श सारा खुमार 
उतर जाता है उनका;

और फिर वो शब्द 
मेरे जी उठते है लगकर
कंठ तुम्हारे;

और फिर भावो में 
डूबकर तुम्हारे वो 
शब्द उत्सुक हो उठते
है अपना जीवन जीने को;

सच कहा था तुमने 
शब्द बोलते है मेरे !

Wednesday, 14 November 2018

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !
•••••••••••••••••••••••••••••••••
ऐसे ही पलों में लगता है मुझे 
जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने, 
तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात;

जब भी चाहा उन टुकड़ों को
समेट कर रखना मैंने तब 
हर वो टुकड़ा चुभ गया;

अंगुली में मेरे और बहने लगा  
वो आँखों की कोरों से मेरे;

लेकिन जब भी याद किया 
मैंने उन लम्हों को वो लम्हे
आकर मेरे कमरे में जैसे;

थिरकने लगे और कितने ही
कहकहे ठहाके लगाने लगे;

और कितने ही आहटों के साये 
मेरे कमरे की खिड़की में आकर 
छुप गए जैसे;

लुका-छुपी खेलते-खेलते जाने
किस दिशा से बहने लगी वही 
प्रेम की बयार और;

कमरे की छत से बरसने लगे 
हरश्रृंगार के फूल और फिर;

ऐसे ही पलों में लगने लगता है 
मुझे जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने, 
तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !

Tuesday, 13 November 2018

सुख-दुःख का मौसम !

सुख-दुःख का मौसम !  
•••••••••••••••••••••••
सुख के मौसम 
में राहत भरा 
स्पर्श बनकर;

दुःख के मौसम
में हंसी का ठहाका
बनकर;

धुप में तेरे 
सर पर छांव
का छाता बनकर;

थकान में देह 
का आरामदेह 
बिछौना बनकर;

और विरह की 
वेदना में साथ 
के लिए बुनी 
चादर बनकर;

मैं रहूँगा सदा
साथ तुम्हारे 
तुम्हारी ही जैसे
परछाई बनकर !   

Saturday, 10 November 2018

चाहतों का गाला घोंट दो !

चाहतों का गाला घोंट दो !
•••••••••••••••••••••••••••
कितनी उम्र गुजारनी
पड़ती है अकेले हमें 
एक हमसफ़र पाने को 
और फिर एक दिन अचानक 
कैसे गतिमान होता है 
हमारा अकेलापन उस 
हमसफ़र को पाने को
लेकिन ये हम में से 
कितनो को पता होता है
की उस हमसफ़र तक 
पहुंचने के बाद मिल ही 
जायेगा हमारी चाहत को  
पूर्णतः पूर्ण विराम या 
फिर दुनियावी दिखावे
और सामाजिक वर्जनाओं 
के दायरे में हम घोंट देंगे 
गाला हमारी चाहत का !

Friday, 9 November 2018

आरती के स्वर !

आरती के स्वर !
••••••••••••••••••
क्या रोज ही सुबह 
आरती के स्वर तुमसे
दुरी बना लेते है;

या उन स्वरों से 
तुम बना लेती हो 
अक्सर दूरियां ;

कहते है सुबह की 
आरती जिसमे हम 
भाव भर लेते है;

वो आरती कभी 
खाली हाँथ नहीं 
लौट कर आती;

क्योंकि सुना है 
भगवान् सदैव 
सिर्फ और सिर्फ  
सच्चे भावों के ही 
भूखे होते है;

तो फिर बताओ 
क्यों नहीं होती 
तुम्हारी वो सुबह
की प्रार्थनाएं पूरी;

आज सच-सच 
बता दो तुम मुझे
क्या सच में तुम 
करती हो प्रार्थना;

उन सच्चे भावों से 
जो मैं अक्सर देखता हु 
उमड़ते हुए तुम्हारी इन  
नम आँखों में;

मैंने तो ये भी सुना
है भगवान सरलता 
में ही बसते है;

तो फिर ये बताओ 
तुम मुझे की सच में
हो उतनी ही सरल;

जितनी सहज और 
सरल सी तुम बसती
हो मेरे इन एहसासों में;

गर ये सब सच है 
तो फिर रोज ही सुबह 
आरती के स्वर तुमसे
दुरी क्यों बना लेते है बोलो !

Thursday, 8 November 2018

चलो हम-सब दीप जलाएं !

चलो हम-सब दीप जलाएं ! 
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 
हर ओर है तम छाया 
इतने दीप कंहा से लाऊ,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

एक भाव के आंगन में 
एक आस की दहलीज़ पर, 
एक निज हिय के द्वार पर
एक सत्य के सिंघासन पर; 

तुम बनो माटी दीपक की 
मैं उसकी बाती बन जाऊ,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

एक देह के तहखाने में भी 
स्वप्निल तारों की छत पर भी, 
एक प्यार की पगडण्डी पर भी 
खुले विचारों के मत पर भी ;

जले हम-तुम फिर बिन बुझे 
तेल बन तिल-तिल जल जाए,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

एक यारों की बैठक में 
एक ईमान की राहों पर,
एक नयी सोच की खिड़की पर
एक तरह तरह की हंसी के चौराहे पर; 

दीप की लौ जो कभी सहमे 
तुफानो से उसे हम तुम बचाएं,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

बचपन की गलियों में भी 
और यादों के मेले में भी, 
अनुभव की तिजोरी में भी 
और दौड़ती उम्र के बाड़े में भी; 

बाती की भी अपनी सीमा है 
चलो उसकी भी उम्र बढ़ाते है,
बाती को बाती से जोड़ देते है 
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं; 

आज हार है निश्चित तम की
जग में ये आस जगा आएं;
सुबह का सूरज जब तक आये 
तब तक प्रकाश के प्रहरी बन जाए,
जंहा-जंहा है तम गहराया 
वंहा-वंहा हम दीप जलाएं !

Wednesday, 7 November 2018

उस रोज़ 'दिवाली' होती है !

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ! 
•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• 
जब मन में हो मौज बहारों की
चमक आये चमकते सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे घेरते हों
तन्हाई में भी तेरी यादों के मेले हों,
उर में आनंद की आभा बिखरती है
मन में उजियारे की रोली फैलती है, 

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ;

जब प्रेम-प्रीत के दीप जलते हों
सपने सबके जब सच होते हों,
मन में उमड़े मधुरता भावों की
और लहके फ़सलें लाड चावों की,
उत्साह उमंग की आभा होती है;
 
उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

जब प्रेम से प्रीत मिलती हों
दुश्मन भी गले लग जाते हों,
जब किसी से वैर भाव न हो
सब अपने हों कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा फैलती हो; 

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

जब तन-मन-प्राण सज जाएं
सद्-गुण के बाजे बज जाएं,
महक आये ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
हिय में तृप्ति की आभा फैलती है; 

उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।

Tuesday, 6 November 2018

साफ़ और स्वच्छ प्राण वायु !

साफ़ और स्वच्छ प्राण वायु !
••••••••••••••••••••••••••••••••
सुनो दादू सुनो नानू 
सुनो काकू और मामू  
कल जब हम सब आएंगे
आपके बुलावे पर आपके 
ही आंगन तो क्या आप हमें 
वो साफ़ और स्वच्छ प्राण 
वायु दे पाएंगे जो साफ़ और 
स्वच्छ प्राण वायु आपको 
आपके दादू ने आपके नानू 
ने आपके काकू ने और आपके 
मामू ने दी थी और आप लोग 
अपनी-अपनी अम्मा अपने अपने 
अब्बू के अनुरागयुक्त निमंत्रण पर  
दौड़े चले आये थे फिर ऐसा क्या हुआ 
पिछले कुछ दशकों में की हमें निमंत्रण 
मिलने के बाद भी हम आपकी तरह दौड़े 
नहीं आ पा रहे है अपनी ही अम्मु और 
अपने ही अब्बू के उसी अनुरागयुक्त 
निमंत्रण पर बोलो ना दादू बोलो ना
नानू बोलो ना काकू बोलो ना मामू
क्या आप हमें दे पाएंगे वो प्राण वायु 
जिसमे हम भी आपकी तरह निष्फिक्र 
होकर वही प्राणवायु अपने इस शरीर 
को दे पाएंगे और गर आपको है कोई 
संशय तो अभी भी वक़्त है संभल जाईये 
और लजिए एक शपथ की इस दीपावली
आप इस प्राण वायु को और नहीं करेंगे 
प्रदूषित ताकि आपके ही पड़ोस में रहने 
वाले वो राजकुमार दादू और राजेश नानू  
दिव्यांश काकू और यशवंत मामू भी आपको 
देख कर इस प्राण वायु को फिर से वैसी  ही 
साफ़ और स्वच्छ बनाएंगे तभी फिर हम 
आपकी तरह दौड़ कर आपके आंगन की 
बगिया में आकर फिर से एक बार चहचहाएंगे ! 

Monday, 5 November 2018

शब्दों में पिरोता हु तुम्हे !

शब्दों में पिरोता हु तुम्हे !
••••••••••••••••••••••••••
शब्द शब्दों में तलाशते है 
मुझे और मैं उन शब्दों में 
पिरोता हु तुम्हे जैसे रात 
होकर पत्तों सी टटोलती 
है खुद पर शबनम को और
चाँद जुगनू सा होकर मंद 
-मंद ढूंढता है अपनी चकोर 
को ठीक वैसे ही जैसे नदी 
खामोश किनारों को पकड़कर 
खल-खल बहती है खोजते हुए 
अपने अथाह समंदर को और 
दूर कंही संन्नाटों के जंगल में 
सुनाई देता है खनकते शब्दों 
का मध्यम शोर थके से किनारों 
की पगडंडियों के उस छोर पर 
तकते बढ़ते वो दो कदम जो 
अपने कदमो में मिलाकर मेरे 
कदम थामते है मुझे और मैं 
उन क़दमों में पा लेता हु तुम्हे 
फिर शब्द शब्दों में तलाशते है 
मुझे और मैं उन शब्दों में एक 
बार फिर से पिरोता हु तुम्हे !

Sunday, 4 November 2018

मैं तुम्हारे पास चला आता हु !

मैं तुम्हारे पास चला आता हु !
•••••••••••••••••••••••••••••••
तुमसे दूर जाने की बहुत सी 
वजहें थी मेरे पास और बहुत 
सी वजहें आज भी है मेरे पास; 

पर जब भी पहले प्यार का जिक्र 
होता है कंही भी तब तुम मुझे 
इस कदर याद आती हो की 
सबकुछ भुलाकर मैं दौड़ा-दौड़ा 
तुम्हारे पास चला आता हु,

तुमसे दूर जाने की बहुत सी 
वजहें थी मेरे पास और बहुत 
सी वजहें आज भी है मेरे पास; 

पर जब भी पहले प्यार पर लिखी 
लिखी खुद की कविता अकेले में 
गुनगुनाता हु मैं तब तुम मुझे 
इस कदर याद आती हो की 
सबकुछ भुलाकर मैं दौड़ा-दौड़ा 
तुम्हारे पास चला आता हु,
  
तुमसे दूर जाने की बहुत सी 
वजहें थी मेरे पास और बहुत 
सी वजहें आज भी है मेरे पास; 

पर जब जब निहारा खुद को 
आईने में मैंने तब-तब मेरी 
आँखों में छाया तुम्हारा वज़ूद 
देखकर तुम मुझे इस कदर 
याद आती हो की सबकुछ 
भुलाकर मैं दौड़ा-दौड़ा 
तुम्हारे पास चला आता हु,

तुमसे दूर जाने की बहुत सी 
वजहें थी मेरे पास और बहुत 
सी वजहें आज भी है मेरे पास; 

पर जब भी सोचा तुम्हारी 
वीरानियों के बारे में तब तुम 
मुझे इस कदर याद आती हो की 
सबकुछ भुलाकर मैं दौड़ा-दौड़ा 
तुम्हारे पास चला आता हु!

Saturday, 3 November 2018

यौवन ही जीवन है !

यौवन ही जीवन है !
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यौवन शक्ति है 
यौवन शिक्षा है 
यौवन समृद्ध है 
यौवन ख़ुशी है 
यौवन प्यास है
यौवन तृप्ति है 
यौवन उपहार है 
यौवन विश्वास है 
यौवन सुन्दर है
यौवन सपना है 
यौवन कर्म है 
यौवन धर्म है
यौवन आशा है 
यौवन वादा है
यौवन संरक्षक है 
यौवन जीवन है 
यौवन प्रवाह है
यौवन बीज है 
यौवन बिंब है 
यौवन यज्ञ है 
यौवन स्वतंत्र है 
यौवन प्रेम है 
यौवन भोग्य है
यौवन सार है 
यौवन प्रेम है 
यौवन ही कारक है
यौवन ही श्रृंगार है  
यौवन ही शिव है !  

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !