Tuesday, 23 January 2018

दीपक की लौ

जैसे अन्धकार में
एक दीपक की लौ
और उसके वृत्त में 
खड़ा दास की मुद्रा 
में उसका साया 
वैसे ही तुम्हारी 
गोल गोल बाँहों 
के दायरे में
सिमटा मेरा वज़ूद
दुनिया में सबसे 
खुशहाल जीवन मेरा 
अक्सर सोचा करता हूँ
इतना ही क्यों नहीं 
हो जाता है मेरे उम्र
का घेरा बस जिस तरह
दीपक की लौ बुझते ही 
उसके साये की सांसें 
भी थम जाती है 
वैसे ही तेरी गोलाकार
बाँहों के दायरे से बहार 
मेरी भी सांसें थम जाए 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !