Wednesday, 3 January 2018

तेरे भावों की उष्मा


चाहता था मैं 
ये जो तन्हा 
लम्हे है मेरे 
ज़िन्दगी के 
जो फैले है 
इस धरा से 
उस छितिज़ तक
उन्हें तेरे इश्क़
की बाँहों में 
समां अपनी उम्र
की सूखती रेत को
तेरे भावों की उष्मा
में भिगो लू और 
फिर तेरे ही किनारे 
बैठ एक गांव बसा लू 
और उसे तेरा नाम दे
तेरी पनाहो में अपनी 
बची ज़िन्दगी गुजार दू 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !