Tuesday, 2 January 2018

इतना खामोश किन्यु है चिड़ा ?

क्या तुम बता सकती हो 
ये रोज-रोज ची-ची कर
शोर मचाने वाला चिड़ा आज
इतना खामोश किन्यु है ?
क्या तुम बता सकती हो 
ये रोज-रोज ची-ची कर
उड़ने वाला चिड़ा आज किन्यु
बैठा है खामोश जैसे किसी ने
पंख क़तर दिए है इसके ?
क्या तुम बता सकती हो 
ये रोज-रोज ची-ची कर
अपनी चोंच को भर लाने
वाला चिड़ा अब तक भूखा किन्यु है ?
क्या तुम बता सकती हो 
ये रोज-रोज ची-ची कर
अपने सीने में जमी ठण्ड को 
गर्म भाप और गर्म पानी से 
मिटाने वाला चिड़ा आज
इतना खामोश किन्यु है ?
शायद तुम्हे पता है पर तुम
कहना नहीं चाहती अपनी जुबा से
की उसकी देह खोज रही है 
अपनी धुप (गौरैया ) को 
और धुप (गौरैया ) आज कंही छोड़ कर 
चली गयी है उससे दूर 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !