प्रेम चाहे जिस उम्र में हो
वो उम्र चाहे बचपन की हो
या हो यौवन की अवस्था
या फिर हो पौढावस्था
लेकिन जब भी होता है
इक्षाएं ,कामनाएं
स्वप्न और ख्वाहिशें
स्वतः ही उसके प्रेम की
कोख में अवतरित हो
उस इंसान को आशावादी
बना देता है प्रेम में
होने के पहले चाहे
उस इंसान का स्वभाव
निराशावादी रहा हो
पर जब उसे भी प्रेम होता है
तब उसके भी प्रेम की
कोख हरी हो जाती है
और वो ये मानने
लग जाता है की
उसका प्रेम उसे अब
अपूर्ण नहीं रहने देगा
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