Saturday 9 December 2017

मेरे भावों की काली सियाही

मेरे भावो को 
काली स्याही से 
उतारता हु ,
तुम्हारे दिल को 
कागज़ बनाकर 
कुछ इस तरह की, 
उतर कर मेरे 
भाव फूलो सा
महका दे तुम्हारे 
मन आँगन को,
ऐसा अकसर 
मैं तब करता हु ,
जब अकेलापन 
मुझे आ घेरता है,
और सांसें होने 
लगती है मद्धम
तब कुछ सांसें 
उधार लेता हु 
तुम्हारे महकते 
मन आँगन से 
थोड़ा और जीने के लिए..

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !