Thursday 21 December 2017

तुम्हारा सहजपन

अब तो हर बीतते 
दिन के साथ ये 
डर मेरे मन में 
बैठता जा रहा है की ,
तुम जब इस प्रेम के 
रास्ते में आ रहे इन 
छोटे छोटे कंकड़ों 
को ही पार नहीं 
कर पा रही हो तो,
कैसे तुम उन रिश्तों के  
पहाड़ को लाँघ कर 
आ पाओगी ?
अब तो मेरे आंसुओं के
जलाशय में भी तुम 
अपना चेहरा देख 
खुद को सहज रख  
ही लेती हो, वो तुम्हारा
सहजपन मुझे हर बार
कहता है, तुमने शायद
कभी मुझे वो प्रेम नहीं
किया जिस प्रेम में 
प्रेमिका दर ओ दीवार 
लाँघ अपने प्रेम को 
वरण करती है !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !