अब तो हर बीतते
दिन के साथ ये
डर मेरे मन में
बैठता जा रहा है की ,
तुम जब इस प्रेम के
रास्ते में आ रहे इन
छोटे छोटे कंकड़ों
को ही पार नहीं
कर पा रही हो तो,
कैसे तुम उन रिश्तों के
पहाड़ को लाँघ कर
आ पाओगी ?
अब तो मेरे आंसुओं के
जलाशय में भी तुम
अपना चेहरा देख
खुद को सहज रख
ही लेती हो, वो तुम्हारा
सहजपन मुझे हर बार
कहता है, तुमने शायद
कभी मुझे वो प्रेम नहीं
किया जिस प्रेम में
प्रेमिका दर ओ दीवार
लाँघ अपने प्रेम को
वरण करती है !
दिन के साथ ये
डर मेरे मन में
बैठता जा रहा है की ,
तुम जब इस प्रेम के
रास्ते में आ रहे इन
छोटे छोटे कंकड़ों
को ही पार नहीं
कर पा रही हो तो,
कैसे तुम उन रिश्तों के
पहाड़ को लाँघ कर
आ पाओगी ?
अब तो मेरे आंसुओं के
जलाशय में भी तुम
अपना चेहरा देख
खुद को सहज रख
ही लेती हो, वो तुम्हारा
सहजपन मुझे हर बार
कहता है, तुमने शायद
कभी मुझे वो प्रेम नहीं
किया जिस प्रेम में
प्रेमिका दर ओ दीवार
लाँघ अपने प्रेम को
वरण करती है !
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