उन पलों में
ना जाने किन्यु
ये दिन किस जल्दी
में होते है; मेरी लाख
मिन्नतों के बाद भी
कोई पल एक पल से
लम्बा होता ही नहीं
भागा चला जाता है ;
मेरे सपनो को रौंद कर
और बिखेर देता है ;
सूरज की लालिमा
उस कमरे में मानो
सिन्दूर फैला हो वंहा;
और फिर मेरे सपनो
का प्रवाह तुम्हारे
जाते ही पहले तो
थमता है फिर धीरे-धीरे
टूट जाता है ;
ना जाने किन्यु
ये दिन किस जल्दी
में होते है; मेरी लाख
मिन्नतों के बाद भी
कोई पल एक पल से
लम्बा होता ही नहीं
भागा चला जाता है ;
मेरे सपनो को रौंद कर
और बिखेर देता है ;
सूरज की लालिमा
उस कमरे में मानो
सिन्दूर फैला हो वंहा;
और फिर मेरे सपनो
का प्रवाह तुम्हारे
जाते ही पहले तो
थमता है फिर धीरे-धीरे
टूट जाता है ;
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