दिन भर की थकान से
चूर सूरज जब उतरता है
धीरे धीरे समंदर में तब
ऐसा प्रतीत होता है जैसे
अपना पूरा नमक उतार
अब सिन्दूर भर रहा है
खुद में ठीक वैसे ही जैसे
थके हारे "राम" के अलसाये
लबो पर तुम रखती हो
अपने रस भरे अधर तो
यु लगता है जैसे उतर
गया हो जिस्म से सारा
का सारा बोझ और जिस्म
रूह की भांति हल्का हो
उड़ने लगता है मुक्त गगन में
No comments:
Post a Comment