Tuesday, 26 December 2017

उतरता सूरज


दिन भर की थकान से 
चूर सूरज जब उतरता है
धीरे धीरे समंदर में तब
ऐसा प्रतीत होता है जैसे 
अपना पूरा नमक उतार
अब सिन्दूर भर रहा है 
खुद में ठीक वैसे ही जैसे
थके हारे "राम" के अलसाये 
लबो पर तुम रखती हो 
अपने रस भरे अधर तो 
यु लगता है जैसे उतर 
गया हो जिस्म से सारा 
का सारा बोझ और जिस्म 
रूह की भांति हल्का हो 
उड़ने लगता है मुक्त गगन में 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !