दौड़ती भागती
ज़िन्दगी में ;
तेरे प्रेम की लहरों
के मध्य सिक्त किनारों
पर कुछ पल ठहराव
सा मिलता है ;
और जब मैं लिखता हु
तुम्हारे प्रेम को तो बर्षों
से दबी प्यास को और
पिपाषीत पाता हु ; तब
कोलाहल मचाते भावो को
अक्षर सौंप देता हु ;
जब मैं लिखता हु
तो अपने भावों की
बूंदों से तेरी प्यासी
धरा को भिगो देता हु ;
फिर मेरी तन्हाईआं को
तेरे मखमली तन की
स्मृतिओं में लपेट कर
सुला देता हु !
ज़िन्दगी में ;
तेरे प्रेम की लहरों
के मध्य सिक्त किनारों
पर कुछ पल ठहराव
सा मिलता है ;
और जब मैं लिखता हु
तुम्हारे प्रेम को तो बर्षों
से दबी प्यास को और
पिपाषीत पाता हु ; तब
कोलाहल मचाते भावो को
अक्षर सौंप देता हु ;
जब मैं लिखता हु
तो अपने भावों की
बूंदों से तेरी प्यासी
धरा को भिगो देता हु ;
फिर मेरी तन्हाईआं को
तेरे मखमली तन की
स्मृतिओं में लपेट कर
सुला देता हु !
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