Saturday 2 December 2017

तुम्हारे जाने के बाद

तुम्हारे जाने के बाद
भी तुम्हारे यहाँ होने 
का भ्रम होता है मुझे 
जैसे हिलते हाथ और 
मुड़ती पीठ दिखती है मुझे ,
पर आँख झपकते ही
तुम्हें न पाकर यहाँ 
अचानक आँखें बरस पड़ती है, 
जबरन रोके भी पानी 
भला कहाँ रुकता है,
तेरे जाने के बाद
ढूंढता रहता हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में,
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है जैसे ..
मेरे जेहन से पर तुम
नहीं होती हो पास मेरे 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !