तुम्हारे जाने के बाद
भी तुम्हारे यहाँ होने
का भ्रम होता है मुझे
जैसे हिलते हाथ और
मुड़ती पीठ दिखती है मुझे ,
पर आँख झपकते ही
तुम्हें न पाकर यहाँ
अचानक आँखें बरस पड़ती है,
जबरन रोके भी पानी
भला कहाँ रुकता है,
तेरे जाने के बाद
ढूंढता रहता हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में,
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है जैसे ..
मेरे जेहन से पर तुम
नहीं होती हो पास मेरे
भी तुम्हारे यहाँ होने
का भ्रम होता है मुझे
जैसे हिलते हाथ और
मुड़ती पीठ दिखती है मुझे ,
पर आँख झपकते ही
तुम्हें न पाकर यहाँ
अचानक आँखें बरस पड़ती है,
जबरन रोके भी पानी
भला कहाँ रुकता है,
तेरे जाने के बाद
ढूंढता रहता हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में,
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है जैसे ..
मेरे जेहन से पर तुम
नहीं होती हो पास मेरे
No comments:
Post a Comment