तुम्हारे अनकहे शब्दों से हुई
बिखरे पड़े थे इधर उधर बैचैन से
मुझे देखा बड़ी ही नाराज़गी से
बहुत सारी शिकायतें थी उन्हें मुझसे
की मैंने उन्हें उकसाया नहीं तुम्हारी
जुबान से बहार आने के लिए
अब मैं निरुत्तर सा खड़ा देख रहा था
बिखरे पड़े तुम्हारे शब्दों को तभी
उनमे से एक सब्द ने मुझसे कहा की
"राम" तुम्हारी ख़ामोशी को भी कभी
शब्दों की जरुरत पड़ेगी याद रखना
की अचानक एक सब्द आँखों में
घुस चुपचाप बहार टपकने लगा
बस फिर क्या था सारी रात तुम्हारे
शब्दों से अपनी आपबीती कहता रहा
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