Friday 29 December 2017

शब्दों की शिकायत






रात सपने में मेरी मुलाकात 
तुम्हारे अनकहे शब्दों से हुई
बिखरे पड़े थे इधर उधर बैचैन से 
मुझे देखा बड़ी ही नाराज़गी से 
बहुत सारी शिकायतें थी उन्हें मुझसे
की मैंने उन्हें उकसाया नहीं तुम्हारी
जुबान से बहार आने के लिए 
अब मैं निरुत्तर सा खड़ा देख रहा था
बिखरे पड़े तुम्हारे शब्दों को तभी 
उनमे से एक सब्द ने मुझसे कहा की 
"राम" तुम्हारी ख़ामोशी को भी कभी 
शब्दों की जरुरत पड़ेगी याद रखना 
की अचानक एक सब्द आँखों में 
घुस चुपचाप बहार टपकने लगा 
बस फिर क्या था सारी रात तुम्हारे
शब्दों से अपनी आपबीती कहता रहा 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !