Tuesday 12 December 2017

खुद को तलाशने

निकला था मैं
खुद को तलाशने
दब के रह गया हु;
ज़िम्मेदारियों 
के बोझ तले;
निकला था मैं
हंसी को तलाशने 
डूब के रह गया हु 
आंशुओं के समंदर में;
निकला था मैं
मलहम खोजने 
वक़्त के खंजर 
के घाव से लथपथ 
पड़ा हु; कुछ यु की 
ये मैं हु या कोई और
खुद को पहचान 
नहीं पा रहा हु;
निकला था मैं
खुद को ढूंढने  
मैं खुद ही खो गया हु; 
अब तुम मुझको 
ढूंढ लेना और शायद
प्यासा मिलु तो तुम
मेरी प्यास बुझा देना !

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !