Wednesday, 20 December 2017

आसमां रहने लगा है खामोश


दिन गर्म और रातें 
ठंडी होने लगी है ;
लगता है दिन और रात 
के मिलन की बेला 
आ गयी है तभी तो 
दोनों आतुर है मिलने को
एक दूजे से तभी तो दिन  
सुलगने लगा है दिन में ; 
और बनकर सिन्दूर उमस 
का रात में टपकने लगा है  
देखो कैसे ये आसमान 
रहने लगा है खामोश;
रात कहराकर ढक लेती है 
ओस का आंचल तब मैं 
ताकता हु तुम्हारी ओर
पूरी की पूरी रात यु 
ही दिन की तरह तुम्हारे 
लिए झरने को  ;

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !