दिन गर्म और रातें
ठंडी होने लगी है ;
लगता है दिन और रात
के मिलन की बेला
आ गयी है तभी तो
दोनों आतुर है मिलने को
एक दूजे से तभी तो दिन
सुलगने लगा है दिन में ;
और बनकर सिन्दूर उमस
का रात में टपकने लगा है
देखो कैसे ये आसमान
रहने लगा है खामोश;
रात कहराकर ढक लेती है
ओस का आंचल तब मैं
ताकता हु तुम्हारी ओर
पूरी की पूरी रात यु
ही दिन की तरह तुम्हारे
लिए झरने को ;
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