Thursday, 7 December 2017

प्रेम की सौगात

जो न होता कुदरत में
सूरज का ताप 
और बादलों की 
नमी का नजारा
धरती का आँचल
रहता सदा बदरंग सा 
दिल में जलती
सूरज सी आग
नयनों से टिप टिप 
करती बरसात
कुदरत के रंग सी
ही तो होती है 
लेकिन शायद 
कहने और करने की
सारी हदें टूट जाती
जो हर आती जाती 
सांसें जिस्म से रूह 
जुदा कर जाती शायद
इसे ही कहते है 
प्रेम की सौगात

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !