बहुतों से सुना था
यु हर पल कहा
नहीं जाता की मैं
तुमसे बेइंतेहा मोहबब्त
करता हु करता रहूँगा
फिर बहुतों से सुना की
रोज-रोज यु मोहोब्बत
में डूबकर लिखना
मुमकिन नहीं होता
लेकिन मैं करू भी तो
क्या करू बोलो तुम
हर पल जब इतनी
सिद्दत से जो याद
आती हो तुम तो ये मेरी
अंगुलियां अपने आप
कलम के साथ कागज़
पर थिरकने को मज़बूर
सी दिखती है
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