Sunday 3 December 2017

रिश्तो की चादर

ऐसा पहली 
बार नहीं है की
रिश्तो की चादर को
फटते हुए देखा हो  
हज़ारो बार देखा है 
फिर उन्ही को सीने
की कोशिश में बीतते है 
ज़िन्दगी के पल
और पलों में सदियाँ 
पहली बार नहीं हुआ 
ऐसा जब देखा हो  
ज़िन्दगी को रूठते हुए  
खुद से ही लेकिन  
फिर देखा है उसे ही 
बुलाते हुए भी बस 
रहता हु मैं इसी  
उधेड़बुन में की  
सीऊ रिश्तो की चादर
या जाऊ ज़िन्दगी 
के बुलावे पर पास उसके 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !