ऐसा पहली
बार नहीं है की
रिश्तो की चादर को
फटते हुए देखा हो
हज़ारो बार देखा है
फिर उन्ही को सीने
की कोशिश में बीतते है
ज़िन्दगी के पल
और पलों में सदियाँ
पहली बार नहीं हुआ
ऐसा जब देखा हो
ज़िन्दगी को रूठते हुए
खुद से ही लेकिन
फिर देखा है उसे ही
बुलाते हुए भी बस
रहता हु मैं इसी
उधेड़बुन में की
सीऊ रिश्तो की चादर
या जाऊ ज़िन्दगी
के बुलावे पर पास उसके
बार नहीं है की
रिश्तो की चादर को
फटते हुए देखा हो
हज़ारो बार देखा है
फिर उन्ही को सीने
की कोशिश में बीतते है
ज़िन्दगी के पल
और पलों में सदियाँ
पहली बार नहीं हुआ
ऐसा जब देखा हो
ज़िन्दगी को रूठते हुए
खुद से ही लेकिन
फिर देखा है उसे ही
बुलाते हुए भी बस
रहता हु मैं इसी
उधेड़बुन में की
सीऊ रिश्तो की चादर
या जाऊ ज़िन्दगी
के बुलावे पर पास उसके
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