जब मैं लिखता हु
तितलिओं के पंख को
जुगनुओं की रोशनी दे ;
तो तुम्हे रातों में आने
का न्योता देता हु ;
तुम्हारी हर भेंट को
अपनी अंजुरी में भर
अपना सबकुछ तुम्हे
अर्पण कर देता हु ;
जब मैं लिखता हु
रूष्ट हो गया हु तुमसे
तब मुझे सब कुछ फीका
पड़ता सा महसूस होता है ;
तब तुम भरती हो मुझमे
अपने वातसल्य का झरना
और फिर घोल देती हो
मिठास मुझमे फिर से जीने की
और मैं फिर से लिखता हु
तितलिओं के पंख को
जुगनुओं की रोशनी दे ;
तो तुम्हे रातों में आने
का न्योता देता हु ;
तुम्हारी हर भेंट को
अपनी अंजुरी में भर
अपना सबकुछ तुम्हे
अर्पण कर देता हु ;
जब मैं लिखता हु
रूष्ट हो गया हु तुमसे
तब मुझे सब कुछ फीका
पड़ता सा महसूस होता है ;
तब तुम भरती हो मुझमे
अपने वातसल्य का झरना
और फिर घोल देती हो
मिठास मुझमे फिर से जीने की
और मैं फिर से लिखता हु
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