Tuesday, 19 December 2017

जब मैं लिखता हु

जब मैं लिखता हु 
तितलिओं के पंख को 
जुगनुओं की रोशनी दे ;
तो तुम्हे रातों में आने 
का न्योता देता हु ;
तुम्हारी हर भेंट को 
अपनी अंजुरी में भर 
अपना सबकुछ तुम्हे 
अर्पण कर देता हु ;
जब मैं लिखता हु 
रूष्ट हो गया हु तुमसे 
तब मुझे सब कुछ फीका
पड़ता सा महसूस होता है ;
तब तुम भरती हो मुझमे 
अपने वातसल्य का झरना 
और फिर घोल देती हो 
मिठास मुझमे फिर से जीने की 
और मैं फिर से लिखता हु 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !