Monday, 4 December 2017

सच के स्वरूप

कई बार सोचता हूँ
तो लगता है की, 
सच का स्वरुप तो 
एक होता है पर ,
हम दोनों के लिए
दो अलग-अलग ही रहा ,
जहा सच के स्वरूप 
दो हो वंहा समय 
अपनी बात कुछ 
इस तरह से कह  
जाता है कि......
वह बदल देता है
रिश्तों के मायने ,
फिर आखिर कैसे टिके 
वो रिश्ते जिनमे सच 
के स्वरुप दो होते है ,
ऐसे रिश्ते कहा तक
निभ सकते है ?

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !