Sunday, 31 December 2017

प्रेम प्रकृति है

नए साल में
प्रेम दिया है
तुम भी देना 

प्रेम प्रकृति है 
हर एक जीव की 
अभिव्यक्ति है उसकी 
ये ढाई आखर

प्रेम शब्द के 
खातिर कुर्बान  
सभी प्रेमी और प्रेमिका  
बिना मोल के है वो सभी 
बिकते यही है सच्चे  
प्रेम की प्रकृति 

मेरा 
प्रेम वो झील है 
जिसमे तुम सदा 
कमल-सी, 
खिली रहना ।

नए साल में
प्रेम दिया है
तुम भी देना 

Saturday, 30 December 2017

कलम थिरकने को मज़बूर दिखती है


बहुतों से सुना था
यु हर पल कहा
नहीं जाता की मैं 
तुमसे बेइंतेहा मोहबब्त
करता हु करता रहूँगा 
फिर बहुतों से सुना की  
रोज-रोज यु मोहोब्बत 
में डूबकर लिखना
मुमकिन नहीं होता
लेकिन मैं करू भी तो
क्या करू बोलो तुम
हर पल जब इतनी 
सिद्दत से जो याद 
आती हो तुम तो ये मेरी
अंगुलियां अपने आप 
कलम के साथ कागज़ 
पर थिरकने को मज़बूर 
सी दिखती है 

Friday, 29 December 2017

शब्दों की शिकायत






रात सपने में मेरी मुलाकात 
तुम्हारे अनकहे शब्दों से हुई
बिखरे पड़े थे इधर उधर बैचैन से 
मुझे देखा बड़ी ही नाराज़गी से 
बहुत सारी शिकायतें थी उन्हें मुझसे
की मैंने उन्हें उकसाया नहीं तुम्हारी
जुबान से बहार आने के लिए 
अब मैं निरुत्तर सा खड़ा देख रहा था
बिखरे पड़े तुम्हारे शब्दों को तभी 
उनमे से एक सब्द ने मुझसे कहा की 
"राम" तुम्हारी ख़ामोशी को भी कभी 
शब्दों की जरुरत पड़ेगी याद रखना 
की अचानक एक सब्द आँखों में 
घुस चुपचाप बहार टपकने लगा 
बस फिर क्या था सारी रात तुम्हारे
शब्दों से अपनी आपबीती कहता रहा 

Thursday, 28 December 2017

प्रेम चाहता क्या है

आखिर प्रेम चाहता क्या है ?
चाहता है रहना सदा साथ 
तुम्हारे होंठो पर मुस्कान बनकर
चाहता है रहना सदा साथ 
कानो में सुरीले गीत बनकर
चाहता है रहना सदा साथ
नथुनों में मनभावन खुसबू बनकर
चाहता है रहना सदा साथ
कंठ में कोयल सी आवाज़ बनकर 
चाहता है रहना सदा साथ
हृदय में अप्रीतम चाहत बनकर
चाहता है रहना सदा साथ
तुम्हारी मांग में सिन्दूर बनकर
चाहता है रहना सदा साथ
तुम्हारी रगो में लहू बनकर

Wednesday, 27 December 2017

दिल उम्मीद में है

पहली शर्द सी 
मुलाकात में ही  
मेरे दिल ने बो 
दिया था कच्चा सा 
एक ख्वाब मेरी  
इन आँखों में ;
शहद सी धुप 
अब चढ़ने लगी है 
और मेरी रूह की 
जमीन पर वो ख्वाब 
पकने लगा है
दिल ए रूह मेरी 
अब उम्मीद में है

Tuesday, 26 December 2017

उतरता सूरज


दिन भर की थकान से 
चूर सूरज जब उतरता है
धीरे धीरे समंदर में तब
ऐसा प्रतीत होता है जैसे 
अपना पूरा नमक उतार
अब सिन्दूर भर रहा है 
खुद में ठीक वैसे ही जैसे
थके हारे "राम" के अलसाये 
लबो पर तुम रखती हो 
अपने रस भरे अधर तो 
यु लगता है जैसे उतर 
गया हो जिस्म से सारा 
का सारा बोझ और जिस्म 
रूह की भांति हल्का हो 
उड़ने लगता है मुक्त गगन में 

Monday, 25 December 2017

चीर प्रतीक्षित प्रेम

मेरे जीवन की
अमावस को अपनी 
चांदनी से दूर करने 
ही तो आयी हो तुम ? 
मेरे विस्वाश को 
अपने सच्चे समर्पण से 
अमर करने ही तो 
आयी हो तुम? 
बरसों की अपनी 
प्रीत को मेरे असीम 
प्रेम का सिन्दूर
लगा कर मुझे 
अपना "राम" 
बनाने ही तो 
आयी हो तुम ?
मेरे चीर प्रतीक्षित 
प्रेम को अपने प्रेम
से अमर बनाने ही तो 
आयी हो तुम ?

Saturday, 23 December 2017

ज़ज़्बात संभाले नहीं जाते

प्रेम है 
प्यार है 
दुलार है 
और इन सब की 
अनुभूति भी है 
मेरे अंदर लेकिन 
इसका भान तो 
मुझे तब होता है 
जब तुम नज़दीक 
होती हो मेरे 
और सच कहु तो 
आज भी विवस ही 
पाता हु खुद को
क्योंकि जब तुम 
पास होती हो मेरे  
तब ज़ज़्बात मेरे
मुझसे ही संभाले
नहीं जाते 

Friday, 22 December 2017

सुनहरे रंगो के ख्वाब

यादों को सुनहरे रंगो 
से रंगने के लिए 
वो ख्वाब भी देखे 
जिनका टूटना पहले 
से ही सुनिश्चित था ;
ये जानते हुए भी की 
ये ख्वाब ही बनेंगे 
एक दिन सबसे 
बड़ी तकलीफ फिर भी 
देखे वो ख्वाब और देखते हुए
जी भर कर हंसा भी था  
उस धुंधली सी तस्वीर
के साथ ये जानते हुए की 
सच की धरातल पर तुम 
कभी नहीं होगी साथ मेरे 
फिर भी साथ पाना चाहता था 
तुम्हारा चाहे मिले वो ख्वाबों 
में ही फिर भी अपनी यादों को
सुनहरे रंगो से रंगने के लिए वो 
ख्वाब भी देखे जिनका
टूटना पहले से ही सुनिश्चित था ;

Thursday, 21 December 2017

तुम्हारा सहजपन

अब तो हर बीतते 
दिन के साथ ये 
डर मेरे मन में 
बैठता जा रहा है की ,
तुम जब इस प्रेम के 
रास्ते में आ रहे इन 
छोटे छोटे कंकड़ों 
को ही पार नहीं 
कर पा रही हो तो,
कैसे तुम उन रिश्तों के  
पहाड़ को लाँघ कर 
आ पाओगी ?
अब तो मेरे आंसुओं के
जलाशय में भी तुम 
अपना चेहरा देख 
खुद को सहज रख  
ही लेती हो, वो तुम्हारा
सहजपन मुझे हर बार
कहता है, तुमने शायद
कभी मुझे वो प्रेम नहीं
किया जिस प्रेम में 
प्रेमिका दर ओ दीवार 
लाँघ अपने प्रेम को 
वरण करती है !

Wednesday, 20 December 2017

आसमां रहने लगा है खामोश


दिन गर्म और रातें 
ठंडी होने लगी है ;
लगता है दिन और रात 
के मिलन की बेला 
आ गयी है तभी तो 
दोनों आतुर है मिलने को
एक दूजे से तभी तो दिन  
सुलगने लगा है दिन में ; 
और बनकर सिन्दूर उमस 
का रात में टपकने लगा है  
देखो कैसे ये आसमान 
रहने लगा है खामोश;
रात कहराकर ढक लेती है 
ओस का आंचल तब मैं 
ताकता हु तुम्हारी ओर
पूरी की पूरी रात यु 
ही दिन की तरह तुम्हारे 
लिए झरने को  ;

Tuesday, 19 December 2017

जब मैं लिखता हु

जब मैं लिखता हु 
तितलिओं के पंख को 
जुगनुओं की रोशनी दे ;
तो तुम्हे रातों में आने 
का न्योता देता हु ;
तुम्हारी हर भेंट को 
अपनी अंजुरी में भर 
अपना सबकुछ तुम्हे 
अर्पण कर देता हु ;
जब मैं लिखता हु 
रूष्ट हो गया हु तुमसे 
तब मुझे सब कुछ फीका
पड़ता सा महसूस होता है ;
तब तुम भरती हो मुझमे 
अपने वातसल्य का झरना 
और फिर घोल देती हो 
मिठास मुझमे फिर से जीने की 
और मैं फिर से लिखता हु 

Sunday, 17 December 2017

हीर-राँझा

प्रेम तुमसे है 
मुझे कुछ कुछ
हीर-राँझा सा ही ,
अदृश्य अपरिभाषित
अकल्पित है सीमायें 
इसकी कैसा ये आकर्षण 
जो विकर्षण की हर सीमा 
तक जाकर भी तोड़ आता है  
दूरियों की सभी बेड़ियाँ ;
और समाहित कर देता है 
मुझे तुझमे कुछ ऐसे की 
सोचता हु तुम्हे अब पुकारू 
मैं भी हीर बोल कर 

Saturday, 16 December 2017

काला धागा

हा ये सच है 
की एक दिन भी
शताब्दी सा महसूस  
होता है जब तुम होती हो 
मुझे दूर थोड़ी सी भी दूर ;
जाने किन्यु ये रात 
ओढ़ लेती है सुस्ती 
और सियाही से भी
स्याह परछाई घेर
लेती है मुझे अपने 
आगोश में और फिर मैं
तुम्हारे प्रेम को बुरी 
नज़र से बचाने के लिए
काला धागा जो बांधा
था मैंने अपनी कलाई में 
उसकी गांठे दुरुस्त 
करने लग जाता हु;
इस डर से की कंही 
गुस्से में मैं ही उसे 
तोड़ ना फेंकू कंही   !

Friday, 15 December 2017

सपनो का प्रवाह

उन पलों में 
ना जाने किन्यु
ये दिन किस जल्दी  
में होते है; मेरी लाख 
मिन्नतों के बाद भी 
कोई पल एक पल से 
लम्बा होता ही नहीं 
भागा चला जाता है ;
मेरे सपनो को रौंद कर
और बिखेर देता है ;
सूरज की लालिमा 
उस कमरे में मानो
सिन्दूर फैला हो वंहा; 
और फिर मेरे सपनो 
का प्रवाह तुम्हारे   
जाते ही पहले तो 
थमता है फिर धीरे-धीरे
टूट जाता है ; 

Thursday, 14 December 2017

ज़िन्दगी की "साँस"

वो "साँस" है 
ज़िन्दगी की 
अपनी ही गति 
से बहती हुई ;
मेरे दर्द से बेखबर
मेरी छुवन से बेअसर
मगर मुझे जिन्दा रखे हुए;
उसकी शीतल छुवन
हर तपन से आज़ाद
करती है मुझे सदा;
उसकी खामोश 
उपस्थिति सदा ही 
करती है बातों से 
तर्क वितर्क ;
वो "साँस" है 
ज़िन्दगी की 
अपनी ही गति 
से बहती हुई ; 

Tuesday, 12 December 2017

खुद को तलाशने

निकला था मैं
खुद को तलाशने
दब के रह गया हु;
ज़िम्मेदारियों 
के बोझ तले;
निकला था मैं
हंसी को तलाशने 
डूब के रह गया हु 
आंशुओं के समंदर में;
निकला था मैं
मलहम खोजने 
वक़्त के खंजर 
के घाव से लथपथ 
पड़ा हु; कुछ यु की 
ये मैं हु या कोई और
खुद को पहचान 
नहीं पा रहा हु;
निकला था मैं
खुद को ढूंढने  
मैं खुद ही खो गया हु; 
अब तुम मुझको 
ढूंढ लेना और शायद
प्यासा मिलु तो तुम
मेरी प्यास बुझा देना !

जब मैं लिखता हु

दौड़ती भागती
ज़िन्दगी में ;
तेरे प्रेम की लहरों
के मध्य सिक्त किनारों 
पर कुछ पल ठहराव 
सा मिलता है ;
और जब मैं लिखता हु 
तुम्हारे प्रेम को तो बर्षों 
से दबी प्यास को और 
पिपाषीत पाता हु ; तब  
कोलाहल मचाते भावो को
अक्षर सौंप देता हु ;  
जब मैं लिखता हु 
तो अपने भावों की 
बूंदों से तेरी प्यासी 
धरा को भिगो देता हु ; 
फिर मेरी तन्हाईआं को 
तेरे मखमली तन की 
स्मृतिओं में लपेट कर 
सुला देता हु !

Sunday, 10 December 2017

"प्रेम तुम्हारा "

एक मात्र भाव 
जो मुक्त है 
हर दव्न्द से
सर्वोपरि , 
सर्वश्रेष्ठ पाक 
"प्रेम तुम्हारा "
सीमाहीन है
इसको दायरों में 
बांधा नहीं जा सकता
दीखता भी है 
महसूस भी किया 
जा सकता है 
"प्रेम मेरा"
अमर है कभी 
दम नहीं तोड़ेगा
अजेय है कभी 
घुटने नहीं टेकेगा 
किसी भी परिस्थिति में
अडिग,निर्भय   
"प्रेम हमारा "

Saturday, 9 December 2017

मेरे भावों की काली सियाही

मेरे भावो को 
काली स्याही से 
उतारता हु ,
तुम्हारे दिल को 
कागज़ बनाकर 
कुछ इस तरह की, 
उतर कर मेरे 
भाव फूलो सा
महका दे तुम्हारे 
मन आँगन को,
ऐसा अकसर 
मैं तब करता हु ,
जब अकेलापन 
मुझे आ घेरता है,
और सांसें होने 
लगती है मद्धम
तब कुछ सांसें 
उधार लेता हु 
तुम्हारे महकते 
मन आँगन से 
थोड़ा और जीने के लिए..

Thursday, 7 December 2017

सांसों की डोर


लपेट दी है मैंने
अपनी सांसों की डोर ,
तुम्हारे चारों और
तुम्हारा ही नाम
जपते हुए तुमसे ही
छुपाकर बांध दी है,
अपनी सांसों
की डोर मज़बूती
से उन सभी गांठों में
की अब तुम मेरी
ज़िन्दगी पूरी होने
के पहले चाहकर भी
नहीं खोल पाओगी,
इन गांठों को बिना मेरी
सांसों की डोर को काटे हुए  ;

प्रेम की सौगात

जो न होता कुदरत में
सूरज का ताप 
और बादलों की 
नमी का नजारा
धरती का आँचल
रहता सदा बदरंग सा 
दिल में जलती
सूरज सी आग
नयनों से टिप टिप 
करती बरसात
कुदरत के रंग सी
ही तो होती है 
लेकिन शायद 
कहने और करने की
सारी हदें टूट जाती
जो हर आती जाती 
सांसें जिस्म से रूह 
जुदा कर जाती शायद
इसे ही कहते है 
प्रेम की सौगात

Tuesday, 5 December 2017

मावठ

आओ इस ठण्ड 
की बारिश में 
हम और तुम 
मिलकर खूब भीगे,
थरथराते होंठों और 
ठण्ड से उठती कँपकपी 
को मिटा देते है दोनों की 
अग्नि से और करते है, 
आज संवाद नज़रों से 
आओ ना जी लेता हु ,
तुझे मैं अब पूरी की पूरी,
और तुम भी जी लो मुझे 
पूरा का पूरा 

Monday, 4 December 2017

सच के स्वरूप

कई बार सोचता हूँ
तो लगता है की, 
सच का स्वरुप तो 
एक होता है पर ,
हम दोनों के लिए
दो अलग-अलग ही रहा ,
जहा सच के स्वरूप 
दो हो वंहा समय 
अपनी बात कुछ 
इस तरह से कह  
जाता है कि......
वह बदल देता है
रिश्तों के मायने ,
फिर आखिर कैसे टिके 
वो रिश्ते जिनमे सच 
के स्वरुप दो होते है ,
ऐसे रिश्ते कहा तक
निभ सकते है ?

Sunday, 3 December 2017

रिश्तो की चादर

ऐसा पहली 
बार नहीं है की
रिश्तो की चादर को
फटते हुए देखा हो  
हज़ारो बार देखा है 
फिर उन्ही को सीने
की कोशिश में बीतते है 
ज़िन्दगी के पल
और पलों में सदियाँ 
पहली बार नहीं हुआ 
ऐसा जब देखा हो  
ज़िन्दगी को रूठते हुए  
खुद से ही लेकिन  
फिर देखा है उसे ही 
बुलाते हुए भी बस 
रहता हु मैं इसी  
उधेड़बुन में की  
सीऊ रिश्तो की चादर
या जाऊ ज़िन्दगी 
के बुलावे पर पास उसके 

Saturday, 2 December 2017

तुम्हारे जाने के बाद

तुम्हारे जाने के बाद
भी तुम्हारे यहाँ होने 
का भ्रम होता है मुझे 
जैसे हिलते हाथ और 
मुड़ती पीठ दिखती है मुझे ,
पर आँख झपकते ही
तुम्हें न पाकर यहाँ 
अचानक आँखें बरस पड़ती है, 
जबरन रोके भी पानी 
भला कहाँ रुकता है,
तेरे जाने के बाद
ढूंढता रहता हूँ
अमर बेल की जडें
जिस्म की मिट्टी में,
तुम्हारी आवाज अब भी
लिपटी हुई है जैसे ..
मेरे जेहन से पर तुम
नहीं होती हो पास मेरे 

Friday, 1 December 2017

बेमौसमी बारिश

महसूस किया है 
तुमने कभी की 
कठोर सा दिखने 
वाला पुरुष भी 
भीगा करता है, 
उस धुप भरी 
दोपहरी में भी ,
जब कभी तुम 
उसे अकेला छोड़ 
कर चली जाती हो, 
तब होती है बेमौसमी
बारिश वंहा जहा ,
कुछ पल को तुम 
ठहरी थी उसके साथ, 
जिस दिन देखोगी तुम  
उसे उस बारिश में 
भीगते उस दिन, 
जा नहीं पाओगी 
तुम छोड़ कर 
उसे अकेला यु ;

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !