Saturday 4 November 2017

तुम्हारे अस्तित्व की चादर

वो दिन भी 
अच्छी से आज 
भी याद है मुझे,
जब मैं चुपके से 
मैं तुम्हे टुकुर-टुकुर 
ताका करता था ,
जैसे तुम्हारे अस्तित्व 
की चादर हटाकर 
ढूंढ रहा था मैं ,  
कोई जाना-पहचाना 
सा चेहरा,
मैं लाख मना करू  
पर मुझे था इंतज़ार 
जरूर किसी का 
वो दिन भी 
अच्छी से आज 
भी याद है मुझे,
जब मैं चुपके से 
मैं तुम्हे टुकुर-टुकुर 
ताका करता था ,
वो दिन तुमने 
अपने हाथो लौटाए
है बैरंग अब चाहती हो ,
फिर वो लौट कर आये वापस 
पर जो दिन बीत जाते है ,
वो कंहा आते है 
लौट कर वापस बोलो 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !