विरह का सावन
ही देखा है मैंने
अब तक जंहा
तन्हाई के बादल
घेरे रहते है और
मेरे दिल की गीली
ज़मीन पर बोया हुआ
तुम्हारी यादों का बीज
अंकुरित हो उठता है...
आँखों के मानसून से
भीग उठती है
दिल की कायनात
वक्त की गर्द से ढकी
मेरे संयम की दीवार का
ज़र्रा ज़र्रा चमक उठता है
धुलकर और तब
तेरे और मेरे बीच
नहीं रहता वक्त का फासला
रूहें मिलती हैं पूरी शिद्दत से
और मोहब्बत को मिलते हैं
नए मायने....
ही देखा है मैंने
अब तक जंहा
तन्हाई के बादल
घेरे रहते है और
मेरे दिल की गीली
ज़मीन पर बोया हुआ
तुम्हारी यादों का बीज
अंकुरित हो उठता है...
आँखों के मानसून से
भीग उठती है
दिल की कायनात
वक्त की गर्द से ढकी
मेरे संयम की दीवार का
ज़र्रा ज़र्रा चमक उठता है
धुलकर और तब
तेरे और मेरे बीच
नहीं रहता वक्त का फासला
रूहें मिलती हैं पूरी शिद्दत से
और मोहब्बत को मिलते हैं
नए मायने....
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