Tuesday, 28 November 2017

तुम्हारी आँखे बोली थी

उस दिन मुझे 
ऐसा लगा था 
जैसे तुमने ही 
मुझे आवाज़ दी हो 
और मैं दौड़ा चला
आया था तुम्हारा 
हाथ थामने जैसे
बस इंतज़ार था 
मुझे तुम्हारे बुलावे का
पर मुझे तो अब तक 
नहीं पता चला 
कि उस दिन 
तुम्हारी आँखे
हंसी थी या बोली थी
या फिर उदास सी थी..
जिसको मैंने सही 
पढ़ा था या गलत 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !