Sunday, 26 November 2017

जादूगरनी रात

जिस तरह 
जादूगरनी रात 
करती है सम्मोहित 
उजालो को
ठीक उसी तरह
तुम्हारा अक्स
भी छा जाता है
मेरे वज़ूद पर 
तुम्हीं कहो
कैसे रहु दूर 
तुमसे कि रात 
कभी भूल से भी
नहीं छोड़ा करती 
अपनी परछाई 
और तुम ना जाने 
कैसे रहती हो दूर
यु मुझसे 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !