बहुत याद आती है
मुझे तुम्हारी ,
अब तो आ जाओ
तुम मेरे पास,
की दिसंबर फिर
एक बार आने वाला है,
धुप भरे दिन और
शर्द ठिठुरती रातें
गरमागरम कॉफी
और मूंगफली के
दिन आने वाले है ,
अब तो आ जाओ
तुम मेरे पास,
ये सब फिर से
तुम्हे बुलाते है
बैठेंगे देर तक
रात को रजाई में
चंदा फिर कभी
नहीं मुझे चिढ़ा
पायेगा और कोहरा
भर आएगा हमारे
कमरे में अलाव भी
फिर क्या कर पायेगा
फिर हम दोनों मिलकर
सुलगाएँगे "सिगड़ी"
"देह"की की चली
आओ तुम पास मेरे
अब की दिसंबर
आने वाला है
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