ज़िन्दगी की बैचेनियों से ;
घबराकर ....और डरकर ...
मैंने मन की खिड़की से;
बाहर झाँका .........
बाहर ज़िन्दगी की बारिश
जोरो से हो रही थी ..
वक़्त के तुफानो के
साथ साथ किस्मत
की आंधी भी थी.
सुखी हुई आँखों
से देखा तो ;
दुनिया के किसी
अँधेरे कोने में ,
चुपचाप बैठी
हुई तुम थी
शायद अपनी
ज़िन्दगी को तलाश
रही थी और इधर मैं
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