Wednesday, 31 July 2019

वादों वाली शाम !


वो तुम्हारे किये गए वादों वाली शाम भी , 
कब की आकर खाली हाँथ लौट गई ; 

फिर उसके पीछे-पीछे सितारों वाली उजियारी ,
रात भी बिन गुनगुनाये ही भरे दिल से लौट गई ; 

फिर एक नयी आस वाली भोर आयी भी और , 
बिन कुछ बताये उनमुनि सी हो कर लौट गयी ; 

फिर एक नयी दोपहर भी आकर बैरंग ही लौट गयी ,
उसके ठीक पीछे पीछे तुम्हारे वादे वाली शाम आई ;

काफी देर इधर-उधर अकेली ही टहलती रही और , 
फिर थक कर अपने घुटनों में सर छुपाये ही बैठी रही ;

फिर काफी देर अकेले ढीठ की तरह वहीँ बैठी रही ;
फिर बे-मन से कुछ मन ही मन बड़बड़ाते हुए लौट गयी ;  

गर ना हो पता तो कर लो पता मुझे नहीं लगता अब ; 
वो शाम फिर कभी लौट कर आएगी तुम्हारे द्वार !   

Monday, 29 July 2019

अहं ब्रह्मास्मि !


अहं ब्रह्मास्मि !

तुम्हारे प्रेम के शब्दों को 
मैं मेरी देह में रमा लेती हूँ 
तदोपरांत मैं आत्मनिर्भर 
होकर अपने तमाम झूठे 
शब्दों को तुम्हारे प्रेम के 
उजियारे शब्दों से रंग लेती हूँ  
तब वो मेरी राह में दीपक 
से जलकर मेरा मार्ग प्रशस्त 
करते है और मैं साहसी होकर 
हमारे प्रेम के विरूद्ध उठती सभी 
अँगुलियों को ठेंगा दिखा कर 
तुम्हारे सिद्ध शब्दों में कहती हूँ  
उन सब से 'अहं ब्रह्मास्मि' और 
एक कोमल अनुभूति को महसूस 
कर खुद को यौवन की रोशनी में 
नहाई अनुभव करती हुई हमेशा 
के लिए बस तुम्हारे पास आने 
को निकल पड़ती हु !

Sunday, 28 July 2019

बेजुबान ख़ामोशी !


बेजुबान ख़ामोशी !

तुम्हारा दिया सबकुछ 
बचा कर रखा है मैंने 
एक सिर्फ तुम्हारे लिए !
कुछ आधी अधूरी धुनें 
कुछ पूरी पूरी सिसकती 
हुई सी आवाज़ें !
कुछ कदम एक ही जगह 
कब से ठहरे हुए है ! 
कुछ आँसुओं की बूंदें 
कुछ उखड़ती हुई सी 
सांसें और कुछ आधी 
अधूरी कवितायेँ !
कुछ तड़पते से एहसास 
कुछ बेजुबान ख़ामोशी 
कुछ चुभते हुए से दर्द !
तुम आओ अब मुझसे 
ये नहीं संभलते अकेले 
आकर सम्भालो इनको !  
जो दिया था तुमने मुझे
वो सबकुछ बचा कर रखा है 
मैंने एक सिर्फ तुम्हारे लिए !

Friday, 26 July 2019

बोलो बोलो कौन है वो !


बोलो बोलो कौन है वो 
तुम्हारा चांद है 
या सुरज है वो, 
बोलो बोलो कौन है वो
तुम्हारा राम है 
या कृष्ण है वो 
बोलो बोलो कौन है वो
तुम्हारा इंसा है 
या ईश है वो  
बोलो बोलो कौन है वो 
तुम्हारा इश्क है 
या प्यार है वो 
बोलो बोलो कोई है वो
तुम्हारा या गोया 
सिर्फ तेरे दिल का 
ख्वाब या ख्याल है वो !

कारगिल विजय दिवस !


देश की सीमा पर तैनात 
देश के जाबांज़ जवानों को 
करता आज पूरा देश करबद्ध प्रणाम है ! 
जब ये जांबाज़ पहरे पर होते है
देशवासी तब चैन से सोते है  
जब-जब आँख उठाता है दुश्मन 
तब-तब जान गंवाता है दुश्मन
ऐसे सभी जाबांज़ जवानों को 
करता आज पूरा देश करबद्ध प्रणाम है ! 
देश सेवा ही धर्म जिसका हो 
हथियार ही जिसका उपदेश हो
करता सदा देश का जय घोष हो  
ऐसे सभी जाबांज़ जवानों को  
करता आज पूरा देश करबद्ध प्रणाम है ! 
करता सदा वो यही अरदास है 
अगला जन्म भी गर मैं पाँऊ
इसी माँ की कोख ही मैं पाँऊ
और भारत माता की गोद में
 फिर से उसी तरह सो जांऊ मैं  
ऐसे सभी जाबांज़ जवानो को 
करता आज पूरा देश करबद्ध प्रणाम है !

Thursday, 25 July 2019

जीवन साथी !


जीवन साथी !

ज़िन्दगी सभी की एक 
फ़ूल के मानिंद होती है ;

उस फूल में पंखुड़ियाँ तो 
गिनती की ही होती है ;

उन पँखुड़ियों में से आधी 
तो अक्सर ज़िम्मेदारियों 
पर ही झर जाती है ;

बची आधी पंखुड़ियाँ उस 
फूल की उस की जीवन साथी ;

पर ही झरे यही हर एक  
इश्क़ की ख्वाहिश होती है !

Wednesday, 24 July 2019

मैंने तो सिर्फ प्रेम किया !

मैंने तो सिर्फ प्रेम किया !

प्रेम तो किया था मैंने तुमसे 
अपनी आँख और दिमाग 
दोनों बंद कर के;
जबकि कई बार मेरी 
इंद्रियां सक्रिय होकर  
जताती रही विरोध;
तभी तो करता रहा मैं   
नज़र अंदाज़ विरोध 
अपनी ही इन्द्रियों का;
क्योंकि मैंने तो पढ़ा था 
प्रेम में कभी तार्किक नहीं 
हुआ जाता;
और मैं कभी हुआ भी नहीं 
परन्तु तुमने तो कभी कोई 
बात मेरी मानी ही नहीं;
जब-तक की तुमने उस बात
को आज़माया नहीं क्योंकि
तार्किक हो तुम;
पर क्या तुमने कभी पढ़ा नहीं
या सुना भी नहीं की प्रेम में कभी
किसी तरह के तर्क की कोई जगह 
नहीं होती;
इसलिए मैंने अपने हिस्से का 
प्रेम किया और तुमने अपने 
हिस्से का तर्क;  
प्रेम तो किया था मैंने तुमसे 
अपनी आँख और दिमाग 
दोनों बंद कर के !

Tuesday, 23 July 2019

मैं फिर भी तुमको चाहूंगा !



मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
सुख के मौसम 
में राहत भरा 
स्पर्श बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
दुःख के मौसम में 
हंसी का ठहाका
बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
धुप में तेरे 
सर पर छांव
का छाता बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
थकान में देह 
का आरामदेह 
बिछौना बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
और विरह की 
वेदना में साथ 
के लिए बुनी 
चादर बनकर ;
मैं फिर भी तुमको चाहूंगा 
साथ तुम्हारे 
तुम्हारी ही जैसे
परछाई बनकर !

Monday, 22 July 2019

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !

तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !

ऐसे ही पलों में लगता है मुझे 
जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने, 
तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात;
जब भी चाहा उन टुकड़ों को
समेट कर रखना मैंने तब 
हर वो टुकड़ा चुभ गया;
अंगुली में मेरे और बहने लगा  
वो आँखों की कोरों से मेरे;
लेकिन जब भी याद किया 
मैंने उन लम्हों को वो लम्हे
आकर मेरे कमरे में जैसे;
थिरकने लगे और कितने ही
कहकहे ठहाके लगाने लगे;
और कितने ही आहटों के साये 
मेरे कमरे की खिड़की में आकर 
छुप गए जैसे;
लुका-छुपी खेलते-खेलते जाने
किस दिशा से बहने लगी वही 
प्रेम की बयार और;
कमरे की छत से बरसने लगे 
हरश्रृंगार के फूल तभी तो ;
ऐसे ही पलों में लगने लगता है 
मुझे जैसे ठीक से ही सहेजे है मैंने, 
तुम्हारे साथ बीते सारे लम्हात !

Sunday, 21 July 2019

अलौकिक प्रेम !


अलौकिक प्रेम !

कैसे लौकिक इंसान का 
लौकिक प्रेम भी अलौकिक
हो जाता है ;  
वो सारे सितारे जो इतनी 
दूर आसमां की गोद में  
टिमटिमाते हुए भी ;
गवाह बन जाते है 
उन प्रेमी जोड़ियों 
के जो सितारों के 
इतने दूरस्थ होने 
के बावजूद भी ;
उनकी उपस्थिति को 
अपने इतनी निकट 
स्वीकारते है की ;
अपनी हर बात को  
एक दूजे के कान में 
फुसफुसाते हुए कहते है ;
वो सितारे जो आसमां
की गोद में अक्सर ही 
टिमटिमाते रहते है ;
वो ही इन प्रेमी जोड़ों 
के प्रेम के अलौकिक 
गवाह बन जाते है ;
इस लोक के प्रेम को 
अलौकिक प्रेम का  
दर्जा दिलाने के लिए !

Saturday, 20 July 2019

रिश्तों का कारवां !

रिश्तों का कारवां !

एहसासों की पगडंडियों पर 
रिश्तों का कारवां उम्मीदों के 
सहारे ही आगे बढ़ता है ! 
लेकिन जिस दिन ये एहसास 
कमजोर पड़ने लगते है उस 
दिन से ही उम्मीदें स्वतः ही 
दम तोड़ने लगती है ! 
और ज़िन्दगी की वो ही 
पगडंडियां जो कारवों से 
भरी रहती है वो उमीदों 
के रहते हुए भी अचानक 
एक दिन सुनसान नज़र 
आने लगती है ! 
और ये उम्मीदें जो दबे 
पांव आकर रिश्तो की डोर 
पर हावी हुई रहती है 
वो फिर एक दम सें 
डगमगाने लगती है !
लेकिन जिन रिश्तों की 
डोर बुनी होती है मतलब 
के धागों से वो टूट जाती है !  
और जिन रिश्तों की डोर 
होती है बुनी विश्वास के 
अटूट धागों से वो डोर उम्मीदों 
का बोझ उठा लेती है ! 
उन सभी रिश्तों की उमीदों 
का और रिश्तों की डोर को 
टूटने से बचा लेती है !

Friday, 19 July 2019

इश्क़ है !

इश्क़ है;
जागते-जागते खोये रहना और;
सोते-सोते जागते रहना !
और मोहब्बत है;
सोते हुए की नींदों में भी;
अपनी मौजूदगी दर्ज़ करवाकर उसे होश में ला देना !
इश्क़ है;
सब-कुछ अपना होकर भी;
उन सभी पर अपना अधिकार खो देना!
और मोहब्बत है;
सब -कुछ पराया होने के बाद भी;
उसे अपना बनाकर उसी पराये का विस्तार करते रहना !
इश्क़ है;
जिसने हर बार तुम्हारे भरोशे को तोडा हो;
उसी की आँखों में एक अश्क़ की बून्द देखकर,
उसी पर एक बार फिर से वही भरोषा करना !
और मोहब्बत है;
उसी टूटे हुए भरोषे को फिर से;
एक अच्छे जुलाहे की तरह बुनना जिसे देख कर 
गांठ लगी होने का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सके !
इश्क़ है;
बंद आँखों से अपनी प्रियतमा से ठीक वैसे ही बात करना;
जैसे वो अभी-अभी उसके सामने आकर बैठी हो !
और मोहब्बत है;
दूर बैठे अपने आशिक़ को ये एहसास भी ना होने देना;
की विरह की उसी वेदना में वो भी जल रही है !
इश्क़ है;
सिलवटों से भरे बिस्तरों में,
अपनी प्रेयषी की खुशबू  को ढूँढना !
मोहब्बत है;
उन्ही सिलवटों में अपने जिस्म 
की बेकरारियाँ छोड़ जाना !
इश्क़ है;
पल-पल टूटकर;
टूटे हुए खुद को खुद-ब-खुद जोड़ना !
मोहब्बत है;
टूट-टूट कर जुड़े उस स्थूल को अपने स्पर्श से;
जाबित कर उसी से शीला भेदन करवा लेना !      
इश्क़ है;
खुद को पल-पल नरक में झोंक कर 
आने वाले पल में स्वर्ग की कामना रखना !
मोहब्बत है;
स्वर्ग और नरक की परिभाषा को ताक  पर रख कर 
मरते दम तक चाहते रहने की प्यास जगा देना !
इश्क़ है;
दो और दो चार आँखों से 
देखा गया सिर्फ एक सपना !
मोहब्बत है;
उस एक अजनबी के सपने को साकार 
करने के लिए दुनिया की सारी दहलीज़ों को लाँघ आना !

Thursday, 18 July 2019

प्रतीक्षित प्रेम !

प्रतीक्षित प्रेम !

मेरे जीवन की तमाम 
अमावस की रात को 
अपनी शीतल चांदनी 
से जगमगाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो ना तुम ;
मेरे असीम विश्वास को 
अपने सच्चे समर्पण से 
उसे शिव बनाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो ना तुम ;
मेरे अटूट प्रेम का 
सिन्दूर लगा कर मुझे 
अपना प्रखर बनाने ही तो 
इस धरती पर आयी 
हो ना तुम ;
मेरे चीर प्रतीक्षित प्रेम 
को अपनी प्रीत के अमरत्व 
से अमर बनाने ही तो इस 
धरती पर आयी 
हो ना तुम;
ओ मेरी प्राणप्रिये 
मेरे इश्क़ के बीज को 
खुद की धरा में बो कर 
उसका विस्तार करने ही 
तो इस धरती पर आयी 
हो ना तुम !

Wednesday, 17 July 2019

रिश्तों का पहाड़ !

रिश्तों का पहाड़ !

अब तो हर बीतते 
दिन के साथ ये डर 
मेरे मन में बैठता 
जा रहा है ;
कि जब तुम अपने  
प्रेम के रास्ते में आ 
रहे इन छोटे मोटे   
कंकड़ों को ही पार 
नहीं कर पा रही 
हो तो ;
तुम कैसे उन रिश्तों 
के पहाड़ को लाँघ कर 
आ पाओगी सदा के 
लिए पास मेरे ;
अब तो मेरे आंसुओं 
के जलाशय में भी 
तुम अपना चेहरा 
देख खुद को सहज 
रख ही लेती हो ; 
वो तुम्हारा सहजपन 
मुझे हर बार कहता है ;
कि तुमने शायद कभी 
मुझे वो प्रेम किया ही 
नहीं क्योंकि ;
जिस प्रेम में प्रेमिका 
दर-ओ-दीवार को लाँघ 
अपने प्रेम का वरण 
नहीं करती है ;
वो प्रेम कभी पुर्णता 
के द्वार में प्रवेश नहीं 
कर पाता है !

Monday, 15 July 2019

तुम्हारा इंतज़ार है !

तुम्हारा इंतज़ार है !

इंतज़ार है मुझे 
कि कभी तो मेरे 
इंतजारो की सीमाए..

बढ़कर तुम्हे छू ही
लेंगी और तुम्हे मेरे 
इंतज़ार का एहसास 
होगा...

तब तो तुम चुपके 
से आगे बढ़कर मेरा 
हाथ थाम ही लोगी...

और मेरे बिखरे सपनो 
को समेट कर उनमे 
रंग भर ही दोगी...
  
इंतज़ार है मुझे 
जब तेरे दिल की 
धड़कन भी मेरे 
दिल की तरह ही 
धड़केंगी... 

और फिर हम होंगे 
सदा-सदा के लिए 
एक दूजे के साथ-साथ !

Sunday, 14 July 2019

प्रेम !


 प्रेम !

प्रेम है 
एक जंगली 
जानवर सा
जो चुपके से 
मन और तन 
को दबोच लेता है ;
उम्मीदों की रौशनी
जलाता है ना चाहते 
हुए भी उस से बचा
नहीं जा सकता !
प्रेम है
उस कमर तोड़
बुखार सा जो 
सरसराता हुआ
रगों में दौड़ता है ;
और हर दवा हर
वर्जना को तोड़ता 
हुआ घर कर लेता है ;
वो हमारे मन तन और 
मस्तिष्क पर भी आखिर 
कोई कैसे और कब तक 
बच सकता है उस 
प्रेम से !

Saturday, 13 July 2019

पूर्णविराम !

पूर्णविराम !

मैं रोज अपने 
भावों को लफ़्ज़ों 
की शक्ल देकर 
एक एक लफ़्ज़ों को 
व्यवस्थित क्रम में 
सजाने की कोशिश 
मात्र करता हूँ
कविता बनती 
भी है की नहीं
मुझे नहीं पता 
पर जब लफ्ज़ 
मुझे सजे हुए  
दिखाई देते है  
तब उनमे तुम 
मुस्कराती हुई
मुझे दिखाई देती हो 
और मैं तुझे यूँ 
मुस्कुराते हुए  
देखते ही उसमे 
पूर्णविराम 
लगा देता हूँ ! 

Friday, 12 July 2019

नदी !

नदी !

सुनो ,
मैंने कही पढ़ा था ,
बहुत गहरी नदी 
बिना आवाज़ के बहती है !
और बहुत ,
गहरे दुःख बिना 
आँसुओं के होते है ;
माना बहुत गहरी नदी 
बिना आवाज़ के बहती है ! 
पर मैंने अक्सर  ,
उसके सैलाबों को   
बेहद उफनते देखा है ;
ठीक वैसे ही , 
बहुत गहरे जख्म 
सहकर किसी के आँसूं , 
भले ही सुख जाए पर अक्सर 
मैंने उन जख्मो को नासूर बनते देखा है ! 
सुनो ,
तुम मेरे आँसुओं 
की तुलना कभी किसी ,
नदी से ना करना क्योंकि ,
मुझे नासूर से बहुत डर लगता है ! 
और ये जख्म नासूर ना बने ,
उसका ध्यान भी अब तुम्हे 
ही रखना है !

Thursday, 11 July 2019

मेरी कायनात !


मेरी कायनात !

चाँद के चेहरे से 
बदली जो हट गयी
रात सारी फिर मेरी 
आँखों में ही कट गयी
छूना चाहा जब तेरी 
उड़ती हुई खुशबू को
सांसें मेरी तेरी ही 
साँसों से लिपट गयी
तुमने छुआ तो रक्स 
कर उठा बदन मेरा
मायूसी सारी उम्र की 
एक पल में छंट गयी
बंद होती और खुलती   
तेरी पलकों के दरम्यान
ए जान ए जाना मेरी  
कायनात सिमट गयी !

Wednesday, 10 July 2019

प्रेम !


प्रेम !

प्रेम अनंन्त है
इसे चाहे तो 
किसी से जोड़ लो
चाहे घटा लो
या गुना करो
चाहे तो भाग दे लो
चाहो तो आगे माइनस 
कितने ही लगा लो 
लेकिन वो वैसे ही 
बना रहेगा सदा 
उसी अभेदता के साथ
जैसे मिले हुये हों
दो शून्य आपस में
सदा सदा के लिए
उसमे से कुछ भी घटाया 
नहीं जा सकता उसमे कुछ 
भी जोड़ा नहीं जा सकता 
क्योंकि प्रेम अनंन्त है !

Tuesday, 9 July 2019

कविता !


कविता !

मैं प्रेमाग्नि में धधकती सी  
कविता लिखना चाहता हूँ

ताकि तुम्हारे सिवा जब कोई 
और उसे महसूस करे तो उसकी 
महसूसियत झुलस जाएँ,

मेरे लफ़्ज़ों के धधकते कोयले 
से उस आग को भभका कर
तुम्हारी समस्त मज़बूरियो को
मैं जला देना चाहता हूँ 

और बन जाना चाहता हूँ
इस ब्रह्मांड का धधकता 
हुआ एक आख़री लावा 

जो जले भी 
तो एक सिर्फ तेरे प्यार में
और बुझे भी तो एक 
सिर्फ तेरे प्यार में !

Sunday, 7 July 2019

कविता !

कविता !

मुझे पता है,
तुम अब तक 
नहीं लिख पायी हो, 
कविता मेरे लिए लेकिन, 
सुनो सच कहूं तो तुम्हारे 
होंठों पर फैली वो मुस्कान, 
मुझे लगती है तुम्हारे द्वारा 
मेरे ऊपर लिखी गयी सबसे 
सुन्दर और हंसी कविता होती है,
जब जब तुम्हे देखता हूँ यूँ खुलकर 
मुस्कुराते हुए तब तब मेरी सारी कविताये
एक पांव पर खड़ी हो कर तुम्हारी उस मुस्कान 
पर लगातार तालियाँ बजाती नज़र आती है !

Saturday, 6 July 2019

वज़ूद !


वज़ूद !

प्रेम हूँ मैं 
वैसे तो मेरा 
अस्तित्व बहुत 
ही बड़ा है ;
पर अगर 
सच कहूँ तो 
डर जाता हूँ ;
कभी कभी 
सच्चाई जानकर ,
मेरी हस्ती बहुत 
छोटी है एक तेरे 
जज्बे से ही मैं हूँ ; 
केवल तेरे दिल 
का वो जज्बा 
जो मुझे कभी 
ईश्वर के समीप 
खड़ा कर देता है ;
और कभी मेरा 
पूरा का पूरा वज़ूद 
तेरे दिल के दरवाज़े 
पर पनाह पाने को  
भूखे प्यासे ही 
तड़पता रहता है !

Friday, 5 July 2019

तुम्हारा एहसास !


तुम्हारे जाने के बाद भी उस कमरे के , 
एक कोने में बैठकर मैं निहारता रहा था ;   

यूँ ही पूरा का पूरा कमरा जहां चारों ओर ,
अस्त व्यस्त सी तुम बिखरी हुई पड़ी थी ;

उस हेंगर पर भी जंहा तुमने आकर अपनी , 
साड़ी टांगी थी उस चादर की सिलवटों में भी थी ; 

और सोफे पर भी थी तुम जंहा बैठकर तुमने ,
साथ मेरे अपने पसंद की अदरक वाली चाय पी थी ; 
  
पूरा कमरा तुम्हारी सौंधी-सौंधी महक में अब भी ठीक , 
वैसे ही महक रहा था जैसे वो तुम्हारे आने पर महका था ; 

मैं चाहता था तुम्हे सलीके से समेट कर केवल अपने ,
जेहन में रखना पर तुम इस कदर महक रही थी ;

कि मैं चाहकर भी नहीं समेट पाया था तुम्हे और ,
तुम्हे यूँ ही हमेशा-हमेशा के लिए वहां रहने दिया था ; 

आज जब तुम नहीं हो साथ मेरे तब भी वो कमरा ,
मुझे वहां तुम्हारे होने का एहसास कराता रहता है ;
  
अब मैं चाहता हूँ तुम उस कमरे की ही तरह मेरे ,   
जेहन में काबिज़ रहो जैसे उस कमरे में रहती थी !

Thursday, 4 July 2019

बांहो के दरमियाँ !


बांहो के दरमियाँ !

एहसास में लिपटा 
वह सूखा सा फूल 
जो रखा सहेज कर 
वो मेरा आज तुम्हें 
दे जाना !

फटे से कागज़ पर 
लिखते रहना बस   
एक तेरा नाम और 
फिर उसे भी सहेज 
कर रख लेना !

कुछ ना कहने पर 
भी मेरे सामने आते 
ही तुम्हारे होंठो का
बेबस हो सुखना !

ना जाने क्यों वो सब  
फिर  सोचते हुए आज 
फिर तुमसे ये पूछने को 
मन कर रहा है

क्या प्रेम की तपीश 
एक दूसरे से दूर रहकर 
भी पनपती रहती है ?

अगर हां तो फिर
ये बताओ मुझे तुम
की एक-दूजे की बांहो 
के दरमियाँ क्या 
पनपता है ! 

Wednesday, 3 July 2019

हम और तुम !


अपने-अपने मुखौटों में हम-तुम ,
कैसे खुद को छुपा कर बैठ गए है ;

हम-तुम अपने-अपने मैं के साथ रहे ,
और बाकी सब को हम भूल गए है ;

सपने जो हम ने साथ-साथ देखे थे ,
सारे वो फिर कैसे तार-तार हो गए है ;

देखने में तो मैं अब भी कली ही हूँ ;
पर मुझ पर भी भवरें मंडरा गए है ,

क्या हम अपने-अपने मैं को त्याग कर ;
तुम और मैं भी अब हम हो गए  है !

Tuesday, 2 July 2019

तुम सा ही अक्स !


तुम सा ही अक्स !

आपूर्तियों को पूरी तरह ,
पूर्ण कर जैसा तुम चाहती हो 
वैसा कर देना चाहता हूँ मैं !

तुम्हे मस्त मौला सा वही 
पहर दे देना चाहता हूँ मैं ,
जिस पहर में हो सिर्फ मैं 
और तुम और कोई नहीं !

चाहे जैसे भी हो हू-ब-हू 
तुम्हारी सी आकर्षक ,
देह का अक्स तुझमे 
उतार देना चाहता हूँ मैं !
  
बर्फ की सिल्लियों सी 
पिघलती हुई हमारे मध्य, 
की तमाम भाव भंगिमाओं को !  

चुन-चुन कर अपने अनुराग 
के सिल्की मज़बूत धागे में , 
पिरो देना चाहता हूँ मैं !    

Monday, 1 July 2019

इश्क़ की ख़्वाहिशें !

इश्क़ की ख़्वाहिशें !

तुम्हारे हृदय पर  
मज़बूरियों ने जो 
घाव कर दिए है ! 

उन पर अब मैं 
मरहम लगा देना 
चाहता हूँ !

किसी भी क़ीमत 
पर लौटना चाहता
हूँ !
  
तुम्हे तुम्हारे सपने 
जिन पर अब कभी 
प्राकृतिक और अप्राकृतिक 
हादसों का भी साया  
ना पड़ सके ! 

अब तुम्हारे इरादों को 
इतना फौलादी कर देना 
चाहता हूँ !

कि वो इरादे चट्टानों 
का भी सीना फाड़ 
बंद हुए सभी रस्ते 
खोल सकने में सक्षम
हो सके !

प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !