स्निग्ध स्पर्श !
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ज़िन्दगी को इतने
करीब से पहले कभी,
महसूस नहीं किया
था मैंने;
जब तुम्हारे होठों के
स्निग्ध स्पर्श को पाया,
तो जाना कैसे कोमलता
कठोरता को एक पल में,
तरल कर देती है;
जब तुम्हारे होठों के
स्निग्ध स्पर्श को पाया,
तो जाना मेरे भाग्य में,
लिखी सबसे बड़ी उपलब्धि
हो तुम;
जब तुम्हारे होठों के
स्निग्ध स्पर्श को पाया,
तो जाना कैसे कोई शब्द,
इन होंठो से लगकर सुरीली
धुन बन जाते है;
जब तुम्हारे होठों के
स्निग्ध स्पर्श को पाया,
तो जाना इन्ही होठों से
निकली पुकार, प्रार्थना बन
रिझा सकती है, किसी भी
रुष्ट देव को;
जब तुम्हारे होठों के
स्निग्ध स्पर्श को पाया,
तो जाना मरने वाला कोई
अपनी ज़िन्दगी को चाहता
है कैसे !
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