Thursday, 7 February 2019

जब मैं लिखता हूँ !

जब मैं लिखता हूँ !
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जब मैं लिखता हूँ 
तितलिओं के पंख को 
जुगनुओं की रोशनी दे ;

तब तुम्हें रातों में मेरे 
पास आने का न्यौता 
देता हूँ ;

ताकि तुम्हारी दी हुई 
हर एक भेंट को मैं अपनी 
अंजुरी में भर तुम्हे वो सब 
अर्पण कर दूँ ;

जब मैं लिखता हूँ 
रूष्ट हो गया हूँ तुमसे;
  
तब मुझे सब कुछ फीका 
पड़ता सा महसूस होता है;

तब तुम भरती हो मुझमे 
अपने वातसल्य का झरना 
और फिर घोल देती हो मिठास 
मुझमे; 

फिर से जीने की और तब 
मैं एक और बार अपने प्यास 
का रिक्त घड़ा लेकर अपने 
हाथों में तुम्हारे सामने खड़ा  
हो जाता हूँ ! 

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प्रेम !!

  ये सच है  कि प्रेम पहले  ह्रदय को छूता है      मगर ये भी उतना  ही सच है कि प्रगाढ़   वो देह को पाकर होता है !