जब मैं लिखता हूँ !
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जब मैं लिखता हूँ
तितलिओं के पंख को
जुगनुओं की रोशनी दे ;
तब तुम्हें रातों में मेरे
पास आने का न्यौता
देता हूँ ;
ताकि तुम्हारी दी हुई
हर एक भेंट को मैं अपनी
अंजुरी में भर तुम्हे वो सब
अर्पण कर दूँ ;
जब मैं लिखता हूँ
रूष्ट हो गया हूँ तुमसे;
तब मुझे सब कुछ फीका
पड़ता सा महसूस होता है;
तब तुम भरती हो मुझमे
अपने वातसल्य का झरना
और फिर घोल देती हो मिठास
मुझमे;
फिर से जीने की और तब
मैं एक और बार अपने प्यास
का रिक्त घड़ा लेकर अपने
हाथों में तुम्हारे सामने खड़ा
हो जाता हूँ !
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